Budhni Mejhan Passes Away: नेहरू की “पत्नी” होने के आरोप में 70 साल से बहिष्कार का दंश झेल रहीं बुधनी का हुआ निधन

रांची, 19 नवंबर : पिछले 70 सालों से अपने ही जाति-समाज के बहिष्कार का दंश झेल रही झारखंड की बुधनी मंझियाईन बीते शुक्रवार की रात दुनिया से रुखसत हो गईं. यह बुधनी ही थीं, जिन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की मौजूदगी में दामोदर वैली कॉरपोरेशन के पंचेत डैम और हाईडल पावर प्लांट का उद्घाटन किया था. लेकिन, इसी दिन के बाद उनके जाति-समाज ने उनके माथे पर तिरस्कार की एक ऐसी लकीर चिपका दी थी, जिसे वह ताजिंदगी ढोती रहीं.

बुधनी मंझियाईन की पूरी कहानी अजीबोगरीब है. वह 6 दिसंबर 1959 की तारीख थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू झारखंड के धनबाद जिले में डीवीसी (दामोदर वैली कॉरपोरेशन) की ओर से निर्मित पंचेत डैम और हाईडल पावर प्लांट का उद्घाटन करने पहुंचे थे. तय हुआ कि नेहरू जी का स्वागत झारखंड के संथाली आदिवासी समाज की लड़की बुधनी मांझी करेगी. बुधनी इस डैम के निर्माण के दौरान मजदूर के तौर पर काम करती थीं. उस वक्त उनकी उम्र करीब 15 साल थी. पारंपरिक आदिवासी परिधान और जेवरात से सजी बुधनी ने नेहरू जी का स्वागत करते हुए उन्हें माला पहनाई.

नेहरू जी ने बुधनी का सम्मान करते हुए अपने गले की माला उतारकर उसके गले में डाल दी. नेहरू जी ने पनबिजली प्लांट का उद्घाटन भी बुधनी के हाथों बटन दबाकर कराया. लेकिन, तब 15 साल की इस लड़की को कहां पता था कि प्रधानमंत्री की मौजूदगी में मिला सम्मान उसके अपने ही समाज में उसके तिरस्कार और बहिष्कार की वजह बन जाएगा ? दरअसल, संथाल आदिवासी समाज में उस वक्त तक परंपरा थी कि कोई लड़की या स्त्री किसी पुरुष को माला नहीं पहनाएगी. लड़का-लड़की या स्त्री-पुरुष एक-दूसरे को माला पहना दें तो इसे विवाह मान लिया जाएगा. सो, नेहरू जी ने सम्मान के साथ जो माला बुधनी के गले में डाली थी, वह उसके लिए जी का जंजाल बन गई.

बुधनी के हाथों पंचेत डैम और पनबिजली प्लांट के उद्घाटन की खबरें और तस्वीरें अगले रोज देश के तमाम अखबारों में प्रमुखता के साथ छपीं, लेकिन संथाल आदिवासी समाज में इस घटनाक्रम को लेकर उल्टी प्रतिक्रिया हुई. समाज ने बकायदा पंचायत बुलाई और ऐलान कर दिया कि बुधनी की शादी नेहरू के साथ हो गई है. वह पूरी जिंदगी नेहरू की पत्नी मानी जाएगी. चूंकि, नेहरू संथाल-आदिवासी समाज के बाहर के व्यक्ति हैं, इसलिए बुधनी का संथाल समाज का कोई संबंध-सरोकार नहीं रहेगा.

पंचायत के ऐलान के बाद बुधनी के लिए घर-परिवार-समाज में जगह नहीं रही. उनका पैतृक गांव भी पंचेत डैम के डूब क्षेत्र में आ गया था और उनका परिवार विस्थापित होकर दूसरी जगह जा चुका था. बुधनी को डीवीसी में श्रमिक के तौर पर नौकरी मिली थी, लेकिन, 1962 में उसे अज्ञात वजहों से नौकरी से निकाल दिया गया. कहते हैं कि आदिवासी समाज के आंदोलन और विरोध की वजह से डीवीसी ने उसे हटा दिया था. इसके बाद वह काम की तलाश में बंगाल के पुरुलिया जिले के सालतोड़ गई तो वहां उसकी मुलाकात सुधीर दत्ता नामक शख्स से हई.

सुधीर उन्हें अपने घर ले गए, जहां दोनों पति-पत्नी की तरह रहने लगे. हालांकि, दोनों की औपचारिक तौर पर शादी नहीं हुई. दत्ता से बुधनी को एक बेटी भी हुई. बरसों बाद भी संथाल समुदाय ने बुधनी और उसके परिवार का बहिष्कार वापस नहीं लिया. सुधीर और बुधनी की बेटी का नाम रत्ना है. उनकी शादी हो चुकी है.

बुधनी एक बार फिर चर्चा में तब आईं, जब किसी कांग्रेसी नेता ने नेहरू जी और बुधनी से जुड़े प्रसंग की चर्चा 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से की. राजीव गांधी ने बुधनी को अपने पास बुलवाया. उनके निर्देश पर डीवीसी ने बुधनी को वापस नौकरी में बहाल कर लिया. यहां नौकरी करते हुए वह रिटायर हुईं तो सालतोड़ा में ही एक छोटे से घर में रहने लगीं.

बुधनी कहती थीं कि डीवीसी के प्लांट और डैम की वजह से उसके पुरखों का घर उजड़ा, इसलिए डीवीसी को उन्हें एक मकान बनाकर देना चाहिए. वह चाहती थीं कि उनकी बात अगर राहुल गांधी तक पहुंच जाए, तो उनका मकान जरूर बन जाएगा. बीते शुक्रवार (17 नवंबर) को पंचेत हिल हॉस्पिटल में बुधनी ने आखिरी सांस ली. कुछ दिन पहले तबीयत खराब होने के बाद उन्हें यहां दाखिल कराया गया था. उनके निधन की खबर सुनकर इलाके के मुखिया और कई मानिंद लोग हॉस्पिटल पहुंचे थे. उनकी बेटी रत्ना भी आखिरी वक्त में उनके पास थीं.

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