देश की खबरें | केंद्र बिहार के आरक्षण वृद्धि कानूनों को नौवीं अनुसूची में शामिल करने पर अपनी मंशा स्पष्ट करे: तेजस्वी

पटना, 23 नवंबर बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बृहस्पतिवार को मांग की कि केंद्र को उच्चतम न्यायालय की 50 प्रतिशत की सीमा से परे वंचित जातियों के लिए आरक्षण बढ़ाकर 65 प्रतिशत किये जाने से संबंधित राज्य के कानूनों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर अपना इरादा तुरंत स्पष्ट करना चाहिए।
बिहार सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने पर केंद्रित दो संशोधन विधेयकों को बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों द्वारा सर्वसम्मति से पारित किए जाने बाद इसपर कानूनी रूप से कोई अडचन न आए, इस बात को ध्यान में रखते हुए राज्य मंत्रिमंडल ने इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किए जाने का एक प्रस्ताव केंद्र के पास भेजने को मंजूरी दी। उसके एक दिन बाद यादव ने एक संवाददाता सम्मेलन में यह मांग उठाई।
संवाददाता सम्मेलन में राजद नेता तेजस्वी यादव के साथ नीतीश कुमार मंत्रिमंडल के कई वरिष्ठ सहयोगी भी थे।
यादव ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की भाजपा नीत सरकार को तत्काल दोनों कानूनों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करना चाहिए। राज्य सरकार द्वारा विधानसभा में जातिगत सर्वेक्षण रिपोर्ट का विस्तृत विश्लेषण पेश करने के कुछ दिनों बाद आरक्षण बढ़ाने वाले ये दोनों संशोधन विधेयक शीतकालीन सत्र के दौरान विधानमंडल ने पारित किए थे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘चूंकि बिहार के भाजपा नेताओं का दावा है कि उन्होंने विधानसभा के साथ-साथ विधानपरिषद में भी दोनों विधेयकों का समर्थन किया है, इसलिए केंद्र को इस मुद्दे पर बिना किसी देरी के अपना इरादा स्पष्ट करना चाहिए।’’
राज्य के वित्त मंत्री और जदयू के वरिष्ठ नेता विजय कुमार चौधरी ने कहा कि नौवीं अनुसूची भारत के संविधान में एक विशेष प्रावधान है जो संसद को संवैधानिक संशोधन के माध्यम से कुछ कानूनों को न्यायिक समीक्षा से छूट देने की अनुमति प्रदान करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘चूंकि संसद सत्र नहीं चल रहा है इसलिए केंद्र फिलहाल राज्य के कानूनों को नौवीं अनुसूची में डालने की घोषणा कर सकता है और जब चार दिसंबर से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होगा तो दोनों कानूनों को नौवीं अनुसूची में शामिल किया जा सकता है।’’
चौधरी ने कहा कि अगर भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार वास्तव में वंचित जातियों के कल्याण में रुचि रखती है तो उसे इस संबंध में तत्काल घोषणा करनी चाहिए।
इसी तरह का विचार व्यक्त करते हुए जदयू के वरिष्ठ नेता और बिहार भवन निर्माण विभाग के मंत्री अशोक चौधरी ने कहा, ‘‘भाजपा नेता दावा करते हैं कि उन्होंने दोनों विधेयकों का समर्थन किया है, अब उन्हें राज्य के इन दोनों कानूनों को तत्काल संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए प्रधानमंत्री से मिलना चाहिए।’’
बिहार में जातिगत सर्वेक्षण कराए जाने के बाद, राज्य सरकार ने हाल में संपन्न बिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के दौरान इसकी विस्तृत रिपोर्ट पेश की थी। इसके बाद सदन ने बिहार में सरकारी पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण बढ़ाने हेतु अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लिए (संशोधन) विधेयक 2023 और बिहार शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन में आरक्षण (संशोधन) विधेयक 2023 पारित किए थे जिनमें शिक्षा और सरकारी रोजगार में जाति आधारित कोटा बढ़ाकर 65 प्रतिशत किए जाने का प्रावधान किया गया है।
विधेयकों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण 16 से बढ़ाकर 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए एक से दो प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ी जाति के लिए 18 से 25 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 15 से 18 प्रतिशत आरक्षण की सीमा बढाए जाने अर्थात आरक्षण की कुल सीमा को 50 से बढ़ाकर 65 प्रतिशत किए जाने का प्रावधान किया गया है ।
राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर द्वारा दोनो विधेयकों को मंजूरी दिए जाने के बाद नई आरक्षण प्रणाली को लागू करने का मार्ग प्रशस्त हो जाने पर नीतीश कुमार सरकार ने मंगलवार को वंचित जातियों के लिए आरक्षण बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने के लिए गजट अधिसूचना जारी की थी।
बिहार के नीतीश कुमार मंत्रिमंडल ने बुधवार को एक प्रस्ताव पारित कर राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा देने की मांग की। इस पर उपमुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘जातिगत सर्वेक्षण के निष्कर्षों के कारण यह जरूरी हो गया है । राज्य सरकार ने वंचित परिवारों के लिए कई कल्याणकारी उपाय करने की योजना बनाई है। ऐसे सभी उपायों के कार्यान्वयन पर 2.50 लाख करोड़ रुपये का खर्च आएगा…इसलिए, हम बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहे हैं। अगर प्रधानमंत्री बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देना चाहते हैं, तो उन्हें सार्वजनिक रूप से इसकी घोषणा करनी चाहिए और फिर हम राज्य के विकास के लिए अपने तरीके से काम करेंगे।’’
चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी भी राज्य को कोई विशेष श्रेणी का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए।

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