नयी दिल्ली, 11 नवंबर पहले रश्मिका मंदाना और फिर कटरीना कैफ। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) तकनीक से तैयार दोनों अभिनेत्रियों के फर्जी वीडियो ने पिछले हफ्ते तहलका मचा दिया था। इस विवाद ने डीपफेक तकनीक का दुरुपयोग रोकने और फर्जी वीडियो की पहचान के लिए बेहतर प्रौद्योगिकी विकसित करने की जरूरत को नये सिरे से उजागर किया है।
दिल्ली पुलिस ने जहां शुक्रवार को रश्मिका के डीपफेक वीडियो के संबंध में अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की, वहीं अमिताभ बच्चन और केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर सहित अन्य लोगों ने इस तकनीक के दुरुपयोग पर चिंता जाहिर की है।
सरकार ने प्रमुख सोशल मीडिया कंपनियों को गलत सूचना, डीपफेक और नियमों का उल्लंघन करने वाली अन्य सामग्री की पहचान करने और रिपोर्ट किए जाने के 36 घंटे के भीतर उन्हें हटाने का परामर्श दिया है।
इजराइल-हमास संघर्ष की पृष्ठभूमि में बहस ने भी कई सवालों को जन्म दिया, जिसमें दुष्प्रचार फैलाने और जनता की राय में हेरफेर करने के लिए डीपफेक वीडियो के इस्तेमाल में वृद्धि देखी गई है।
डीपफेक वीडियो क्या होते हैं?
-डीपफेक वीडियो सिंथेटिक मीडिया होते हैं, जिनमें मौजूद किसी व्यक्ति की तस्वीर या वीडियो को अन्य व्यक्ति की तस्वीर और वीडियो से बदल दिया जाता है। हालांकि, डीपफेक तकनीक कई वर्षों से मौजूद है, लेकिन हाल में यह तेजी से परिष्कृत और सुलभ हो गई है, जिससे इसके दुरुपयोग को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।
हम क्या कर सकते हैं?
-डीपफेक के प्रसार से निपटने का एक तरीका जनता को इस प्रौद्योगिकी और नकली वीडियो की पहचान करने के तरीके के बारे में शिक्षित करना है।
ओपन-सोर्स जांच (ओएसआईएनटी) विशेषज्ञ एवं प्रशिक्षक इओघन स्वीनी ने ‘पीटीआई-‘ को बताया, “तकनीकी विशेषज्ञता या क्षमताओं से कहीं अधिक एक मानसिकता है, जिसे प्रोत्साहित करने की जरूरत है। लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है कि नकली सामग्री का निर्माण बड़े पैमाने पर हो रहा है और यह दिन बदिन आसान होता जा रहा है।”