देश की खबरें | उच्च न्यायालय, सत्र न्यायालय क्षेत्राधिकार से बाहर दर्ज मामले में दे सकते हैं सीमित अग्रिम जमानत

नयी दिल्ली, 20 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय अपने क्षेत्रीय अधिकारक्षेत्र से बाहर दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में गिरफ्तारी का सामना कर रहे व्यक्ति को सीमित अवधि के लिए अग्रिम जमानत दे सकते हैं।
इसने कहा कि यह नागरिक के जीवन के अधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा करने के लिए आवश्यक है।
न्यायालय ने अपने आदेश में, इस तरह की राहत प्रदान करने के लिए कई शर्तें निधार्रित कीं। इस आदेश का उन आपराधिक मामलों में व्यापक असर पड़ेगा जहां आरोपी को दूसरे राज्यों में दर्ज मामले में अपनी गिरफ्तारी की आशंका होती है।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा, ‘‘हमारा विचार है कि व्यक्ति के जीवन, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार की रक्षा करने की संवैधानिक जरूरत पर विचार करते हुए, उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) की धारा 438 के तहत अंतरिम संरक्षण के रूप में सीमित अग्रिम जमानत दे सकते हैं।’’
न्यायालय ने यह भी कहा कि इस तरह की अग्रिम जमानत देने का उपयोग असाधारण और अत्यावश्यक परिस्थितियों में किया जाना चाहिए।
पीठ का यह फैसला एक महिला की उस अपील पर आया, जिसमें उसने बेंगलुरु की एक स्थानीय अदालत द्वारा अलग रह रहे पति और परिवार के सदस्यों को अग्रिम जमानत दिए जाने को चुनौती देते हुए दायर की थी।
राजस्थान के झुंझनू जिले में चिरावा थाने में दर्ज दहेज प्रताड़ना से जुड़ी प्राथमिकी के सिलसिले में यह अग्रिम जमानत दी गई थी।
फैसले में क्षेत्राधिकार के संबंध में एक प्रश्न का भी उत्तर दिया गया।
न्यायालय ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि आरोपी उस राज्य में सक्षम अदालत का रुख कर सकता है, जहां वह रह रहा है या किसी वैध उद्देश्य के लिए यात्रा कर रहा है और सीमित ट्रांजिट अग्रिम जमानत के तौर पर राहत मांग सकता है। भले ही, प्राथमिकी उस जिले या राज्य के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में दर्ज नहीं की गई हो…।’’

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