देश की खबरें | भारत ने एलएसी पर बुनियादी ढांचे के निर्माण में देर की, अब तेजी से काम जारी: लेफ्टिनेंट जनरल कालिता

गुवाहाटी, 21 नवंबर थलसेना की पूर्वी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल राणा प्रताप कालिता ने मंगलवार को कहा कि भारत ने चीन से लगी सीमा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण में पड़ोसी देश की तुलना में देर से शुरुआत की, लेकिन अब इसपर तेजी से काम किया जा रहा है।
पूर्वी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ ने यह भी कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर स्थिति “सामान्य लेकिन कुछ हद तक अप्रत्याशित” है।
कालिता ने ‘गुवाहाटी प्रेस क्लब के अतिथि’ के रूप में कहा, “उन्होंने (चीन ने) हमसे बहुत पहले बुनियादी ढांचे का निर्माण शुरू कर दिया था। एक राष्ट्र के रूप में हमने बुनियादी ढांचे का निर्माण देर से शुरू किया, लेकिन अब हम इसमें तेजी ला रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि चीन से लगी सीमा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण में जबरदस्त प्रयास किया गया है, चाहे वह लद्दाख हो या सिक्किम या अरुणाचल प्रदेश या उत्तराखंड या हिमाचल।
उन्होंने कहा कि सरकार बुनियादी कनेक्टिविटी के लिए सड़कें और ट्रैक और मोबाइल संचार के लिए हेलीपैड बना रही है।
कलिता ने कई विषयों पर खुलकर बात करते हुए कहा, “जीवंत ग्राम कार्यक्रम के तहत, भारत एलएसी के करीब स्थित गांवों में बहुत सारे बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है ताकि शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हों।”
भारत और चीन के बीच सीमा क्षेत्रों की मौजूदा स्थिति के बारे में उन्होंने कहा, “सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में एलएसी के संबंध में स्थिति सामान्य लेकिन कुछ हद तक अप्रत्याशित बनी हुई है। मुद्दों का समाधान होने तक समस्याएं बनी रहेंगी।”
उन्होंने कहा कि भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक “बदलाव” आ रहा है और सिविल सोसाइटी की भागीदारी के बिना केवल सशस्त्र बल भविष्य में होने वाला कोई युद्ध नहीं जीत सकते।
कालिता ने कहा कि “बदलाव” ने भारतीय थलसेना को प्रभावित किया है, जो फिलहाल पांच अलग-अलग कार्यक्षेत्रों में एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है।
उन्होंने कहा, “रूस-यूक्रेन युद्ध जारी है, इजराइल-हमास संघर्ष भी जारी है। हमारे पड़ोस में भी काफी अस्थिरता है। लिहाजा, पूरी भू-राजनीति बदल रही है। एक बदलाव हो रहा है। और इसका प्रभाव न केवल हमारे देश पर बल्कि हमारी सशस्त्र सेनाओं पर भी पड़ता है।”
लेफ्टिनेंट जनरल कालिता ने कहा, चूंकि चारों ओर “परिवर्तन” हो रहे हैं, तकनीकी विकास हो रहा है तो इससे युद्ध के तरीकों पर प्रभाव पड़ रहा है।
उन्होंने कहा, “केवल सशस्त्र बल ही भविष्य में कोई युद्ध नहीं जीत सकते। पूरे देश को प्रयास करना होगा। पूरे देश के हर वर्ग को भविष्य की लड़ाई में भाग लेना होगा। हाल के इजराइल-हमास संघर्ष और रूस-यूक्रेन संघर्ष से यह साबित होता है।”
कलिता ने कहा कि वर्तमान समय के युद्ध में, आबादी का कोई भी हिस्सा अछूता नहीं रहता और इससे नागरिक-सैन्य समन्वय का महत्व पता चलता है।
उन्होंने कहा, “इसलिए, युद्ध लड़ने की पद्धति भी बदल रही है। यही कारण है कि 2023 को भारतीय सेना ने परिवर्तन के वर्ष के रूप में चिन्हित किया है। ये बदलाव पांच मुख्य स्तंभ पर आधारित हैं।”
उन्होंने कहा कि इन पांच स्तंभों में बल पुनर्गठन एवं अनुकूलन, आधुनिकीकरण एवं प्रौद्योगिकी समावेशन, प्रक्रियाएं एवं कार्य, मानव संसाधन प्रबंधन, और एकीकरण हैं।
उन्होंने कहा, “हमें देश की सामाजिक-राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक जरूरतों के साथ सुरक्षा जरूरतों के साथ सामंजस्य बिठाने की जरूरत है। इसलिए हमें सभी क्षेत्रों में तालमेल बनाना चाहिए।”

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