देश की खबरें | न्यायमूर्ति फातिमा बीवी: रूढ़ियां तोड़कर शीर्ष अदालत की पहली न्यायाधीश बनने वालीं छोटे शहर की लड़की

तिरुवनंतपुरम, 23 नवंबर वर्ष 1927 में तत्कालीन त्रावणकोर रियासत के एक छोटे से शहर में जन्मीं न्यायमूर्ति एम फातिमा बीवी की उच्चतम न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश और बाद में तमिलनाडु की राज्यपाल बनने तक की यात्रा रूढ़ियों को तोड़ने का प्रेरणादायक उदाहरण है।
कोल्लम के एक निजी अस्पताल में बृहस्पतिवार दोपहर उनका निधन हो गया। वह विशेष रूप से महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत थीं। न्यायमूर्ति बीवी ने न केवल महिलाओं के लिए पुरुष-प्रधान न्यायपालिका में करियर बनाने का मार्ग प्रशस्त किया, बल्कि वह कानूनी पेशे में लैंगिक असंतुलन को दूर करने के लिए एक आदर्श भी बन गईं।
न्यायमूर्ति बीवी ने शीर्ष अदालत में अपनी पदोन्नति को एक बंद दरवाजे के खुलने जैसा बताया था। हालांकि, उनके पिता मीरा साहब के आग्रह के बिना, शीर्ष अदालत में पहली महिला न्यायाधीश का खिताब शायद वर्षों बाद न्यायमूर्ति सुजाता मनोहर के पास जाता। फातिमा बीवी कानून में करियर बनाने से पहले विज्ञान की छात्रा थीं।
न्यायमूर्ति बीवी की सेवानिवृत्ति के दो साल बाद 1994 में न्यायमूर्ति मनोहर को उच्चतम न्यायालय में नियुक्त किया गया था।
न्यायमूर्ति बीवी के पिता, जो एक उप-रजिस्ट्रार कार्यालय में सरकारी कर्मचारी थे, ने अपने आठ बच्चों में से सबसे बड़ी संतान को रसायन विज्ञान में एमएससी करने के बजाय कानून की पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया। वह नहीं चाहते थे कि फातिमा तिरुवनंतपुरम में कॉलेज टीचर या प्रोफेसर बनें।
न्यायमूर्ति बीवी ने अपनी स्कूली शिक्षा पतनमतिट्टा के कैथोलिकेट हाई स्कूल से पूरी की और तिरुवनंतपुरम के यूनिवर्सिटी कॉलेज से बीएससी की डिग्री हासिल की।
इसके बाद उन्होंने तिरुवनंतपुरम स्थित ‘विधि महाविद्यालय’ से कानून की डिग्री ली और 1950 में वकील के रूप में पंजीकरण कराया।
इसके बाद उन्हें 1958 में केरल अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं में मुंसिफ के रूप में नियुक्त किया गया। उन्हें 1968 में अधीनस्थ न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और वह 1972 में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट बनीं।
न्यायमूर्ति बीवी 1974 में जिला एवं सत्र न्यायाधीश बनीं और 1980 में उन्हें आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण के न्यायिक सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया। उन्हें 1983 में केरल उच्च न्यायालय में पदोन्नत किया गया और अगले ही वर्ष वह वहां स्थायी न्यायाधीश बन गईं। वह 1989 में भारत के उच्चतम न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनीं और 1992 में वहां से सेवानिवृत्त हुईं।
न्यायमूर्ति बीवी को 1989 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। उनकी नियुक्ति ऐसे समय हुई थी जब मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 को लेकर विवाद चल रहा था।
वह 1997 में तमिलनाडु की राज्यपाल बनीं।
अपने व्यापक कानूनी करियर के दौरान, उन्होंने विभिन्न मामलों की सुनवाई की लेकिन उन्हें विशेष रूप से दिवंगत अन्नाद्रमुक नेता जे जयललिता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने को लेकर याद किया जाता है, जब उन्होंने तमिलनाडु की राज्यपाल के रूप में कार्य किया था। उस समय जयललिता पर चल रहे भ्रष्टाचार के मामलों को देखते हुए इस फैसले की आलोचना हुई। न्यायमूर्ति बीवी ने जुलाई 2002 में तमिलनाडु की राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया था।
तमिलनाडु की राज्यपाल के रूप में सेवा से पहले, न्यायमूर्ति बीवी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सदस्य और केरल पिछड़ा वर्ग आयोग की अध्यक्ष थीं। केरल सरकार ने 2023 में उन्हें केरल प्रभा पुरस्कार से सम्मानित किया।
न्यायमूर्ति बीवी के परिवार के एक सदस्य के अनुसार, वह अविवाहित थीं।

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