बेंगलुरु, 22 नवंबर कर्नाटक के सामाजिक-आर्थिक एवं शिक्षा सर्वेक्षण की रिपोर्ट सरकार के समक्ष आने से पहले ही विवादों के बीच घिर गई है। सामाजिक-आर्थिक एवं शिक्षा सर्वेक्षण सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिए गले की फांस बनता जा रहा है, जिसे, जिसे ‘जाति जनगणना’ के रूप में भी जाना जाता है।
दरअसल सर्वेक्षण पार्टी के भीतर कलह की वजह बन रहा है क्योंकि प्रभावशाली समुदाय इसे स्वीकार करने से मना कर रहे हैं और सर्वे की मूल प्रति गायब होने का आरोप लगा रहे हैं।
ऐसे भी संकेत मिल रहे हैं कि कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा सर्वेक्षण रिपोर्ट दाखिल करने में भी विलंब हो रहा है, जिसकी वजह से सरकार रिपोर्ट के दाखिल होने तक आयोग के मौजूदा अध्यक्ष के. जयप्रकाश हेगड़े का कार्यकाल दो महीने तक के लिए बढ़ा सकती है। हेगड़े का कार्यकाल इस महीने समाप्त हो रहा है।
राज्य सरकार और मुख्यमंत्री सिद्धरमैया को मुश्किल में डालने का काम किया है उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने।
सिद्धरमैया ने मंगलवार को जोर देकर कहा था कि रिपोर्ट को स्वीकार करने का उनका फैसला अटल है वहीं शिवकुमार ने एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें उनसे सर्वेक्षण के डेटा को खारिज करने का अनुरोध किया गया था। शिवकुमार के साथ-साथ कांग्रेस के कई नेताओं ने इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
उपमुख्यमंत्री शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और इस ज्ञापन को वोक्कालिगारा संघ ने दाखिल किया है। वोक्कालिगा संघ द्वारा दाखिल ज्ञापन पर कुछ मंत्रियों व कांग्रेस विधायकों ने भी हस्ताक्षर किए हैं।
कांग्रेस के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा, पूर्व मुख्यमंत्रियों एस.एम. कृष्णा, डी.वी. सदानंद गौड़ा, एच.डी. कुमारस्वामी जैसे दिग्गज नेताओं और केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे, नेता प्रतिपक्ष आर. अशोक तथा भारतीय जनता पार्टी व जनता दल (सेक्यूलर) के कई विधायकों ने इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।