देश की खबरें | आदिवासी क्षेत्रों में ‘स्वशासित पृथक प्रशासन’ के आईटीएलएफ के आह्वान को मणिपुर सरकार ने अवैध बताया

इंफाल, 17 नवंबर मणिपुर सरकार ने कुकी-जो समुदाय के प्रभाव वाले जिलों में ‘स्वशासित पृथक प्रशासन’ के इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) संगठन के आह्वान की कड़ी निंदा की है और इसे अवैध बताया है।
राज्य सरकार के प्रवक्ता और शिक्षा मंत्री बसंतकुमार सिंह ने बृहस्पतिवार की रात संवाददाताओं से कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि गैर-जिम्मेदाराना बयान राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति को खराब करने और बिगाड़ने के उद्देश्य से प्रेरित हैं।।’’
मंत्री ने कहा, ‘‘सत्तारूढ़ पार्टी के विधायकों की बृहस्पतिवार को हुई बैठक में बयान की कड़ी निंदा की गई और आईटीएलएफ एवं संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई शुरू की जा रही है।’’
मणिपुर में कुकी-ज़ो जनजातियों के अग्रणी संगठन आईटीएलएफ ने बुधवार को उन क्षेत्रों में ‘स्वशासित पृथक प्रशासन’ स्थापित करने की धमकी दी थी जहां ये जनजातियां बहुमत में हैं।’
संगठन ने कहा कि पूर्वोत्तर राज्य में छह महीने से अधिक समय से चले आ रहे जातीय संघर्ष के बाद भी केंद्र सरकार ने अभी तक अलग प्रशासन की उनकी मांग को स्वीकार नहीं किया है।
आईटीएलएफ के महासचिव मुआन टोम्बिंग ने कहा, ‘‘मणिपुर में जातीय संघर्ष शुरू हुए छह महीने से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन अलग प्रशासन की हमारी मांग के संबंध में कुछ नहीं किया गया है। अगर कुछ हफ्तों के भीतर हमारी मांग नहीं सुनी गई, तो हम अपने स्वशासन की स्थापना करेंगे, चाहे कुछ भी करना पड़े और केंद्र इसे मान्यता दे या नहीं ।’’
मणिपुर इंटीग्रिटी कोर्डिनेशन कमेटी (सीओसीओएमआई) ने भी आईटीएलएफ की अलग प्रशासन की मांग की निंदा की है और कहा है कि इससे मौजूदा तनावपूर्ण स्थिति और खराब होगी।
सीओसीओएमआई ने एक बयान में कहा, यह शांतिपूर्ण व्यवस्था को स्थायी रूप से समाप्त करने की एक साजिश है, यह केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को अच्छी तरह से पता है कि मणिपुर में हिंसा के पीछे मुख्य रूप से अवैध अप्रवासी हैं।
मई में पहली बार जातीय संघर्ष भड़कने के बाद से मणिपुर कई बार हिंसा की चपेट में आ चुका है और अब तक 180 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं ।
मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं।

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