देश की खबरें | विपक्षी सांसदों ने कहा: आपराधिक कानूनों से संबंधित विधेयक मौजूदा कानूनों का ‘कॉपी-पेस्ट’

नयी दिल्ली, 13 नवंबर संसद की गृह मामलों से संबंधित स्थायी समिति में शामिल विपक्षी सांसदों ने प्रमुख आपराधिक कानूनों के स्थानों पर लाए गए तीन विधेयकों पर असहमति नोट देते हुए कहा है कि ये प्रस्तावित कानून वर्तमान कानूनों की ‘‘काफी हद तक कॉपी-पेस्ट’’ है।
विपक्षी सदस्यों ने विधेयकों के नाम केवल हिंदी में होने पर भी आपत्ति जतायी और इसे असंवैधानिक एवं गैर-हिंदीभाषी लोगों का अपमान करार दिया।
समिति के कुछ विपक्षी सदस्यों का यह भी कहना था कि रिपोर्ट को अंतिम रूप दिए जाने से पहले व्यापक रूप से विचार-विमर्श नहीं किया गया।
गृह मामलों से संबंधित समिति ने इस महीने की शुरुआत में ‘भारतीय न्याय संहिता’, ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता’ और ‘भारतीय साक्ष्य अधिनियम’ विधेयकों पर अपनी रिपोर्ट स्वीकार ली और उन्हें राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को सौंप दिया।
समिति में शामिल कम से कम आठ विपक्षी सदस्यों अधीर रंजन चौधरी, रवनीत सिंह बिट्टू, पी. चिदंबरम, डेरेक ओ’ब्रायन, काकोली घोष दस्तीदार, दयानिधि मारन, दिग्विजय सिंह और एन आर एलांगो ने विधेयकों के कई प्रावधानों का विरोध करते हुए अलग अलग असहमति नोट दिए हैं।
तीन विधेयक भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम के स्थान पर लाए गए हैं।
लोकसभा में कांग्रेस के नेता चौधरी ने अपने असहमति नोट में कहा, ‘‘कानून काफी हद तक एक जैसा है। इसमें केवल पुनर्व्यवस्थित किया गया है।’’
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि समिति के समक्ष गवाही देने के लिए प्रतिष्ठित वकीलों और न्यायाधीशों को बुलाने की जरूरत थी।
उनका कहना था, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि समिति के अध्यक्ष रिपोर्ट सौंपने में बहुत जल्दबाजी में थे।’’
तृणमूल कांग्रेस के सांसद ओ’ब्रायन ने कहा कि तथ्य यह है कि मौजूदा आपराधिक कानून के लगभग 93 प्रतिशत हिस्से में कोई बदलाव नहीं किया गया है, 22 अध्यायों में से 18 को ‘कॉपी- पेस्ट’ किया गया है, जिसका मतलब है कि इन प्रमुख बदलावों के लिए पहले से मौजूद कानून को आसानी से संशोधित किया जा सकता था।
उन्होंने कहा कि इतने बड़े कानून के लिए संबंधित पक्षों के साथ परामर्श की कमी दिखी।
पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी.चिदंबरम ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 348 के तहत सभी अधिनियम अंग्रेजी में होंगे जो उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों की भी है।

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