विदेश की खबरें | फलस्तीनी बच्चों की उम्मीद मौजूदा संकट से पहले ही क्षीण हो रही थी, ‘‘भविष्य को लेकर अब भी चिंतित’’

ऑकलैंड, 14 नवंबर (द कन्वरसेशन) साल 2019 से अन्य सभी संघर्षों में सालाना मारे गए बच्चों की कुल संख्या से अधिक बच्चों के, अकेले अक्टूबर में, गाजा में मारे जाने की सूचना मिली है। इस दुखद आंकड़े की वजह से संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस को कहना पड़ा कि गाजा ‘‘ बच्चों का कब्रिस्तान’’ बन गया है।
हमास द्वारा सात अक्टूबर को इजराइल पर किए गए हमले के बाद से मानवीय त्रासदी पैमाने और दायरे के मामले में अभूतपूर्व रही है। हालांकि, पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक में स्थिति उतनी गंभीर नहीं है, लेकिन उन क्षेत्रों में भी युवाओं पर इसका प्रभाव गंभीर है।
सुरक्षा चिंताओं के कारण बड़ी संख्या में स्कूल बंद कर दिए गए हैं और कस्बों के बीच आवाजाही काफी सीमित हो गई है। इजराइली और फलस्तीनी आबादी के बीच हिंसा बढ़ गई है और इसे रोकने के लिए इजराइली सेना या सरकार द्वारा बहुत कम हस्तक्षेप देखने को मिला है।
यूनिसेफ द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को दी गई जानकारी के अनुसार, हालिया संघर्ष से फलस्तीन और इजराइल दोनों जगह रहने वाले बच्चों को ‘‘लगने वाला आघात जीवन पर्यंत रह सकता है।’’हालांकि, फलस्तीनी बच्चों पर लंबे संघर्ष का प्रभाव स्पष्ट हो गया है।
मैंने 2019 से 2022 के बीच चार वर्षों में गाजा, पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक में रहने वाले बच्चों की सेहत का पता लगाने के लिए किए गए एक अध्ययन का नेतृत्व किया।
नॉर्वे शरणार्थी परिषद के साथ साझेदारी में किये गए अध्ययन में हमने लगभग 800 बच्चों और उनके शिक्षकों का सर्वेक्षण किया। जो रुझान हमने देखे, वे गंभीर चिंता का कारण थे और यह स्थिति पिछले महीने शुरू संघर्ष से महीनों पहले थी।

‘हमेशा रहते असुरक्षित’
गाजा में हमने जिन बच्चों का सर्वेक्षण किया, वे अपने जीवनकाल में कम से कम तीन बड़े इजराइली सैन्य अभियानों को देख चुके हैं। इजराइल द्वारा क्षेत्र की लंबे समय तक की गई घेराबंदी के कारण, वे खाद्य असुरक्षा, बिजली और पेयजल की गैर भरोसेमंद आपूर्ति के साथ बड़े हुए।
उनकी देखभाल करने वालों में से अधिकांश बेरोजगार थे, कई बच्चे गरीबी में रहने के साथ-साथ घर के भीतर हिंसा के शिकार थे।
इसके बावजूद, 2019 में हमने गाजा के जिन बच्चों पर सर्वेक्षण किया, उनमें जबरदस्त जीवट दिखा, 80 प्रतिशत को उम्मीद थी कि भविष्य में चीजें बेहतर होंगी। कई बच्चों के लिए, स्कूल जाना और सफल होना उन्हें अपनी परिस्थितियों से बाहर निकलने के रास्ते के तौर पर दिख रहा था।
हालांकि, 2022 तक स्थिति स्पष्ट रूप से बदल गई थी। कोविड-19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन के बाद 2021 के वसंत ऋतु में हिंसा की घटनाओं में वृद्धि हुई, इसके बाद जब बच्चे स्कूल लौटे तो केवल 20 प्रतिशत ने अपने भविष्य के बारे में सकारात्मक रुख दिखाया।
ऐसी परिस्थितियों ने बेहतर कल की आकांक्षा, आशा और सपने देखने की उनकी क्षमता को खत्म कर दिया था। जैसा कि लड़कों के एक समूह ने साथ मिलकर लिखी गई कहानी में वर्णित किया है, ‘‘हम भविष्य से डरते रहते हैं। हम उन घटनाओं को नहीं भूल सकते, जिनसे हम गुजरे हैं और हर समय असुरक्षित महसूस करते हैं।’’
महामारी से राहत
हमारे शोध से पता चलता है कि वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों में रहने वाले बच्चों के लिए भी यही सच है, जो अपने बीच इजराइली बाशिंदों और उनकी सेना की उपस्थिति का सामना करते हैं।
सर्वेक्षण में पता चला कि इजराइली सैन्य नियंत्रण (हेब्रोन एच2) वाले हेब्रोन के हिस्से और पूर्वी यरूशलम में रहने वाले बच्चों को स्कूल आने-जाने के दौरान दैनिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है। कई बच्चों को सैन्य चौकियों से गुजरना पड़ता है, जहां उन्हें देरी और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
इन बच्चों के लिए, महामारी ने इन दैनिक यात्राओं को करने से एक प्रकार की राहत प्रदान की। हेब्रोन एच2 में रहने वाली लड़कियों के एक समूह ने लिखा, ‘सड़कें शांत थीं, और हमारे और सैनिकों के बीच सामान्य तौर पर होने वाला संघर्ष नहीं था।’’
महामारी के बाद स्कूल फिर से वैसे समय में खुले, जब कब्जा की गई फलस्तीनी भूमि पर इजराइली बस्तियों के तेजी से विस्तार को लेकर वेस्ट बैंक में तनाव और हिंसा बढ़ गई। स्कूलों और उसके आसपास हमलों में वृद्धि हुई, साथ ही फलस्तीनी हताहतों की संख्या में भी वृद्धि हुई।
सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में किए गए हमारे सर्वेक्षण में बच्चों की सेहत में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई, विशेष रूप से भय की अवस्था में खुद को शांत रखने की उनकी क्षमता और उनके सामने आने वाली दैनिक चुनौतियों के समाधान के बारे में सोचने की क्षमता में।
यरूशलम के बाहर एक स्कूल में लड़कियों के एक समूह ने लिखा, ‘‘जब भी कोई घटना होती है, तो हड़ताल होती है, जिससे हमारा स्कूल फिर से बंद हो जाता है और हमें घर से पढ़ाई करनी पड़ती है, जो हमें पसंद नहीं है। हम इस स्थिति से हताश, उदास और क्रोधित हैं।’’
हताशा और संघर्ष
हिंसा के इस मौजूदा चक्र को समाप्त करने के लिए अब युद्धविराम के लिए दबाव बढ़ रहा है। अगर यह होता है तो मानवीय सहायता संगठन और दानदाता शारीरिक और मनोवैज्ञानिक क्षति को दूर करने, ठीक करने के अपने प्रयासों को दोबारा शुरू करेंगे।
लेकिन अगर इजराइल-फलस्तीन संघर्ष के मूल कारणों पर ध्यान नहीं दिया गया और यथास्थिति को हमेशा के लिए बदलने का कोई बड़ा अंतरराष्ट्रीय संकल्प नहीं होता तो यह अपरिहार्य लगता है कि हम और अधिक रक्तपात और पीड़ा देखेंगे।
संघर्ष में फंसे दोनों पक्षों के बच्चे दीर्घकालिक और स्थायी समाधान के पात्र हैं। हमारे सर्वेक्षण से पता चलता है कि वर्तमान आपात स्थिति से पहले ही उनकी जीवटता कम हो रही है। आशाविहीन होने से यह स्थिति और खराब होगी जैसा कि एक स्कूल के प्रधानाचार्य ने मुझसे कहा, ‘‘हम जिस स्थिति में हैं, उसमें हम फंसा हुआ महसूस करते हैं और हिंसा हमारी हताशा को बढ़ाती है।’’
(द कन्वरसेशन)

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