देश की खबरें | संवीक्षा समिति को जाति प्रमाण पत्र की मंजूरी संबंधी अपने फैसले की स्वत: समीक्षा का अधिकार नहीं: अदालत

मुंबई, 24 नवंबर बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि राज्य जाति संवीक्षा समिति के पास अपने पिछले रिकॉर्ड को स्वत: सत्यापित करने, स्वयं के पिछले निर्णयों संबंधी मामलों पर फिर से विचार करने और पहले दिए जा चुके जाति वैधता प्रमाणपत्रों को अमान्य घोषित करने की कोई शक्ति नहीं है।
न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने एक नवंबर को पारित और शुक्रवार को उपलब्ध कराए गए एक आदेश में कहा कि जाति संवीक्षा समिति को अपने निर्णयों की समीक्षा करने के लिए कानून के तहत कोई अधिकार नहीं दिया गया है।
सरकारी कर्मचारियों ने 1992 से 2005 की अवधि के बीच उन्हें जारी किए गए जाति प्रमाणपत्रों को अमान्य घोषित करने के संबंध में समिति द्वारा पिछले साल स्वत: संज्ञान लेकर पारित आदेशों को चुनौती देने वाली 10 याचिकाएं दायर की हैं, जिन्हें अदालत ने स्वीकार कर लिया।
याचिकाकर्ता अनुसूचित जनजाति – कोली महादेव, ठाकुर और ठाकर समूहों से संबंधित हैं।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि किसी को दिए गए जाति प्रमाण पत्र पर केवल तभी सवाल उठाया जा सकता है, यदि उच्च न्यायालय इसे लेकर प्रथम दृष्ट्या संतुष्ट हो।
अदालत ने कहा, ‘‘जाति संवीक्षा समिति को अपने जारी आदेशों द्वारा दी गई वैधता के बंद हो चुके मामलों को किसी की शिकायत पर या किसी अन्य तरीके से फिर से खोलने या उसकी समीक्षा करने की खुली छूट या लाइसेंस नहीं दिया जा सकता।’’
पीठ ने कहा कि यदि समिति के पास अपने आदेशों की समीक्षा करने की ऐसी अंतर्निहित शक्तियां होंगी तो इसके ‘‘विनाशकारी परिणाम’’ होंगे।
पीठ ने 10 याचिकाकर्ताओं को दिए गए जाति प्रमाणपत्रों को अमान्य घोषित करने के समिति द्वारा पिछले साल पारित आदेशों को रद्द कर दिया।

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