पटना, 22 नवंबर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य मंत्रिमंडल ने बुधवार को बिहार को ‘विशेष राज्य’ का दर्जा देने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया।
मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया पर यह जानकारी साझा करते हुए केंद्र सरकार से अनुरोध किया कि बिहार के लोगों के हित को ध्यान में रखते हुये केन्द्र सरकार इसे शीघ्र ही विशेष राज्य का दर्जा दे। उन्होंने कहा कि हाल में राज्य में जाति सर्वेक्षण के आलोक में इसकी आवश्यकता महसूस की जा रही है।
जनता दल (यूनाईटेड) के शीर्ष नेता नीतीश ने कहा, ‘‘देश में पहली बार बिहार में जाति आधारित गणना का काम कराया गया है। जाति आधारित गणना के सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक स्थिति के आंकड़ों के आधार पर कमजोर तबकों के लिये आरक्षण सीमा को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया गया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिये 10 प्रतिशत आरक्षण पूर्ववत लागू रहेगा, अर्थात इन सभी वर्गो के लिए कुल आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दिया गया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जाति आधारित गणना में सभी वर्गों को मिलाकर बिहार में लगभग 94 लाख गरीब परिवार पाये गये हैं, उन सभी परिवार के एक सदस्य को रोजगार के लिए 2 लाख रुपये तक की राशि किस्तों में उपलब्ध करायी जायेगी।’’
मुख्यमंत्री ने कहा कि 63,850 आवासहीन एवं भूमिहीन परिवारों को जमीन क्रय के लिए दी जा रही 60,000 रुपये की राशि की सीमा को बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दिया गया है। साथ ही इन परिवारों को मकान बनाने के लिए 1.20 लाख रुपये दिये जायेंगे।
उन्होंने कहा कि जो 39 लाख परिवार झोपड़ियों में रह रहे हैं उन्हें भी पक्का मकान मुहैया कराया जायेगा जिसके लिए प्रति परिवार 1.20 लाख रुपये की दर से राशि उपलब्ध करायी जायेगी।
उन्होंने कहा, ‘‘सतत जीविकोपार्जन योजना के अन्तर्गत अत्यंत निर्धन परिवारों की सहायता के लिए अब एक लाख रूपये के बदले दो लाख रूपये दिये जायेंगे।’’
मुख्यमंत्री ने कहा कि इन योजनाओं के क्रियान्वयन में लगभग दो लाख 50 हजार करोड़ रुपये की राशि व्यय होगी और इन कामों के लिये काफी बड़ी राशि की आवश्यकता होने के कारण इन्हें 5 साल में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘यदि केन्द्र सरकार द्वारा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाये तो हम इस काम को बहुत कम समय में ही पूरा कर लेंगे।’’
उन्होंने कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग वर्ष 2010 से ही हो रही है और इस मांग पर तत्कालीन केन्द्र सरकार ने रघुराम राजन कमेटी भी बनाई थी जिसकी रिपोर्ट सितम्बर, 2013 में प्रकाशित हुई थी लेकिन उस समय भी तत्कालीन केन्द्र सरकार ने इसके बारे में कुछ नहीं किया।
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला जद (यू) पिछले साल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग हो गया था। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और वामपंथी दलों के सहयोग से सरकार बनाई।
उनकी ही पहल पर विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) का गठन किया गया और वह इसके प्रमुख नेता के रूप में उभरे हैं। नीतीश लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि यदि ‘इंडिया’ गठबंधन की केंद्र में अगली सरकार बनती है, तो वह ‘सभी पिछड़े राज्यों को विशेष दर्जा’ देने का दबाव डालेंगे।
आरक्षण में वृद्धि के साथ वंचित जातियों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में लगे नीतीश ने अब लंबे समय से चली आ रही बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को फिर से उठाकर नया दांव चला है।
उन्होंने हाल में अपनी इस पुरानी मांग को बिहार विधानसभा के पटल उस समय दोहराया था जब नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण बढ़ाने वाले विधेयक विधानसभा में पेश किए गए थे।
पिछले हफ्ते उन्होंने यह भी कहा था कि विशेष राज्य के दर्जे की मांग पूरी नहीं होने पर वह राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे।
मुख्यमंत्री के बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग के बारे में पत्रकारों द्वारा पूछे जाने पर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने कहा, ‘‘हां, बिहार को विशेष दर्जा मिलना चाहिए।’’
शाम को दिल्ली के लिए उड़ान से रवाना होने पटना हवाई अड्डा पहुंचे राजद सुप्रीमो से यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें लगता है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार इस मांग पर सहमत होगी, तो उन्होंने कहा, ”ऐसा नहीं हो सकता है, लेकिन हम उन्हें सत्ता से बाहर करने की दिशा में काम कर रहे हैं।”
एक दशक से अधिक समय तक उपमुख्यमंत्री के रूप में इस मांग के समर्थक रहे, वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने अपना रुख बदलते हुए एक बयान जारी कर कहा, ‘‘केंद्र की मौजूदा सरकार के तहत बिहार को एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की वित्तीय सहायता मिली है। पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार के तहत 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया गया था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अपने राजनीतिक स्टंट से मरे हुए घोड़े को कोड़े मारने के बजाय, नीतीश कुमार को यूपीए का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस और उसके प्रभावशाली सहयोगी लालू प्रसाद से पूछना चाहिए कि बिहार को विशेष दर्जा क्यों नहीं मिला, जबकि उन्होंने लगातार दो कार्यकाल केंद्र में सत्ता का आनंद लिया।’’