बीजिंग, 23 नंवबर चीन के प्रधानमंत्री ली क्विंग ने दुनिया के आर्थिक रूप से उबरने की राह को अभी मुश्किल बताते हुए जी-20 समूह के सदस्य देशों से अपील की कि वे विकास एवं समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए इस साल नयी दिल्ली में हुए जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन में बनी सर्वसम्मति को लागू करने की दिशा में और व्यावहारिक कदम उठाएं।
ली ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई डिजिटल बैठक में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की ओर से प्रतिनिधित्व किया। ली ने सदस्य देशों से विकास में सहयोग को उच्च प्राथमिकता देने और विकास के मुद्दों के राजनीतिकरण का विरोध करने का आग्रह किया।
कई नेताओं ने बुधवार को हुई डिजिटल शिखर वार्ता में इजराइल-हमास संघर्ष का जिक्र करते हुए समय पर मानवीय सहायता पहुंचाए जाने, हिंसा को और न बढ़ने देने और फलस्तीन मामले का दीर्घकालिक समाधान खोजने का आह्वान किया, लेकिन ऐसा बताया जा रहा है कि बैठक में ली ने जी20 के सदस्य देशों के बीच विकास को लेकर सहयोग बढ़ाए जाने पर ध्यान केंद्रित किया।
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी ‘शिन्हुआ’ ने बुधवार रात ली के भाषण के कुछ अंश जारी किए, जिनमें हमास-इजराइल संघर्ष का उल्लेख नहीं है जबकि शी ने दक्षिण अफ्रीका द्वारा फलस्तीन-इजराइल मामले पर आयोजित ब्रिक्स की असाधारण डिजिटल शिखर वार्ता में इजराइल-हमास संघर्ष में विराम, बंधक बनाए गए सभी आम नागरिकों को छोड़े जाने और संकटग्रस्त क्षेत्र में स्थायी शांति के लिए द्विराष्ट्र समाधान का आह्वान किया था।
ब्रिक्स में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं।
ली ने बुधवार को जी20 की बैठक में कहा कि वैश्विक आर्थिक सुधार की राह अब भी कठिन है और चीन सहयोग की मूल आकांक्षा को बनाए रखने, समय की मांग के अनुसार काम करने और मानवता के लिए बेहतर भविष्य बनाने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए सभी पक्षों के साथ मिलकर कार्य करने के वास्ते तैयार है।
ली ने जी20 सदस्य देशों से विकास के लिए सहयोग को उच्च प्राथमिकता देने का आह्वान किया और विकास के मुद्दों के राजनीतिकरण का विरोध किया। उन्होंने कहा कि नयी दिल्ली में हुए 18वें जी20 शिखर सम्मेलन में बनी सहमति को लागू करने के लिए अधिक व्यावहारिक कदम उठाए जाने चाहिए।
ली ने इस साल सितंबर में आयोजित जी20 के नयी दिल्ली शिखर सम्मेलन में भी शी की ओर से प्रतिनिधित्व किया था।
उन्होंने जी20 बैठक में कहा, ‘‘अधिक निकटता से समन्वय और सहयोग करना, बहुपक्षवाद को पुनर्जीवित करना, वृहद आर्थिक मामलों संबंधी नीतिगत सहयोग को मजबूत करते रहना और विश्व व्यापार संगठन एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के सुधार में विकासशील देशों की चिंताओं पर अधिक ध्यान देना आवश्यक है।’’