देश की खबरें | न्यायालय ने उत्तराधिकार का मुद्दा उठाने वाली याचिका की खारिज, कहा-विधायिका के दायरे में आता है यह

नयी दिल्ली, 20 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) अधिनियम,1937 के अनुरूप उत्तराधिकार का मुद्दा उठाते हुए कहा गया कि यह विषय विधायिका के दायरे में आता है और ‘पर्सनल लॉ’ विभिन्न धर्मों के लिए अलग-अलग हैं।
याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ अधिनियम,1937 यह प्रावधान करता है कि भारत में मुसलमान उत्तराधिकार, विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता आदि के विषयों में शरियत कानून से शासित होने चाहिए।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने सवाल किया, ‘‘विधायिका उत्तराधिकार पर एक साझा कानून बना सकती है। न्यायालय कैसे कह सकता है कि जो चीज हिंदू कानून के तहत विरासत में मिलती है, वह मुस्लिम कानून के तहत भी विरासत में मिलनी चाहिए?’’
पीठ ने कहा कि वह याचिका में किये गए अनुरोध को स्वीकार नहीं कर सकती, जो धर्म की परवाह किये बगैर उत्तराधिकार में समान अधिकार देने के समान होगा।
याचिकाकर्ता की ओर से न्यायालय में पेश हुए अधिवक्ता मैथ्यू जे नेदुमपारा ने कहा कि शरियत कानून के अनुसार, याचिकाकर्ता व एक मुस्लिम महिला अपने दिवंगत पति की संपत्ति में केवल 12.5 प्रतिशत प्राप्त करने की हकदार है।
उन्होंने कहा कि सभी नागरिकों को, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, विरासत का समान अधिकार होना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘पर्सनल लॉ विभिन्न धर्मों के लोगों के लिए अलग-अलग हैं।’’

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