विदेश की खबरें | प्लास्टिक प्रदूषण के समाधान के लिए वैश्चिक संधि की जरूरत क्यों

कैनबरा, 13 नवंबर (द कन्वरसेशन) सालों की चर्चा के बाद केन्या के नैरोबी स्थित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम मुख्यालय में वैश्विक प्लास्टिक संधि को लेकर अंतरराष्ट्रीय वार्ता इस सप्ताह बहाल हुई।
वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण पर संयुक्त राष्ट्र अंतर सरकारी वार्ता समिति का तीसरा सत्र आज शुरु हुआ और यह 19 नवंबर यानी रविवार तक चलेगा।
समिति का लक्ष्य प्लास्टिक के उत्पादन, डिजाइन और निपटान सहित उसके पूर्ण जीवन चक्र को लेकर कानूनी रूप से बाध्य समझौते का मसौदा 2024 तक तैयार करना है। इसमें 175 देश शामिल हैं और संधि का उद्देश्य प्लास्टिक कचरे की निस्तारण प्रक्रिया में परिवर्तन लाना एवं नयी प्रौद्योगिकी और उद्योग का रास्ता साफ करना है।
प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या इतनी बड़ी है कि कोई एक देश इससे नहीं निपट सकता और इसलिए वैश्विक पहल की जरूरत है। इससे पहले ओजोन परत में छेद और तेजाब की बारिश को लेकर काम हुआ था और फिर से प्लास्टिक की समस्या को लेकर काम हो सकता है।
ओजोन की परत में हुई छेद को हमने कैसे ठीक किया
सीएसआईआरओ में मैं प्लास्टिक कचरे को खत्म करने के मिशन का नेतृत्व कर रही हूं जिसका मकसद प्लास्टिक के निर्माण और इस्तेमाल के तरीके में बदलाव, पुनर्चक्रण और निस्तारण करना है। हमारा काम प्रस्तावित संयुक्त राष्ट्र प्लास्टिक संधि के अनुरूप है, इसलिए हम वार्ता पर करीब से नजर रख रहे हैं।
पूर्व में कई बहुपक्षीय समझौतों ने उल्लेखनीय बदलाव लाने में मदद की। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ने वैश्विक स्तर पर पर्यावरण एवं औद्योगिकी परिदृश्य को आकार दिया। 1987 में लागू इस प्रोटोकॉल का उद्देश्य उन वस्तुओं के इस्तेमाल पर रोक लगाना था जिससे ओजोन की परत पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा था।
प्रोटोकाल को वैश्विक स्तर पर इसकी स्वीकार्यता के लिए जाना जाता है और देश इस बदलावों के साथ अब भी जुड़े हुए हैं। इस समय हो रहे कार्य ने न केवल ओजोन की परत में हुई छेद को भरने में मदद की बल्कि इससे लाखों लोगों को संभावित तौर पर त्वचा और आंखों के कैंसर की बीमारी से बचाया।
इस प्रोटोकॉल की वजह से रसायान उद्योग को भी नवोन्मेष करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। उद्योगों ने ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों जैसे क्लोफ्लोरोकार्बन या सीएफसी को छोड़ पर्यावरण अनुकूल तत्वों का इस्तेमाल करने के लिए बदलाव किए।
शुरुआती तौर पर सीएफसी के विकल्प के रूप में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन या एचएफसी का इस्तेमाल किया गया लेकिन जल्द ही इसकी पहचान संभावित ग्रीन हाउस गैस के तौर पर की गई जिसका नतीजा हुआ कि इसके इस्तेमाल को रोकने और जलवायु अनुकूल विकल्प को अपनाने के लिए प्रोटोकॉल में 2016 में किगाली संशोधन हुआ।
इसका नतीजा है कि अब वैश्विक स्तर पर हम रेफ्रीजेरेटर और वातानुकूलन में हम सुरक्षित रसायनों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
वैश्विक कानून वास्तविक बदलाव ला सकते
स्वच्छ वायु कानून एक और उदाहरण है। 20वीं सदी के उत्तरार्ध में तेजाब की वर्षा एक प्रमुख पर्यावरणीय चिंता बन गई। ऐसा तब होता है जब सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) और नाइट्रोजन ऑक्साइड वायुमंडल में छोड़े जाते हैं, ये दोनों गैस आमतौर पर औद्योगिक प्रक्रियाओं और जीवाश्म ईंधन के जलने से वायुमंडल में पहुंचते हैं।
वायुमंडल में पहुंचने के बाद ये प्रदूषक जलवाष्प के साथ प्रतिक्रिया करके सल्फ्यूरिक एसिड और नाइट्रिक एसिड बनाते हैं। जैसे ही वे बारिश या बर्फ के साथ मिश्रित होकर जमीन पर गिरते हैं, उच्च अम्लता जलीय पारिस्थितिकी तंत्र, जंगलों और यहां तक ​​कि मानव निर्मित संरचनाओं को नुकसान पहुंचाती है।
इसके मद्देनजर विभिन्न देशों ने स्वच्छ वायु कानून बनाया। उदाहरण के लिए, अमेरिका ने स्वच्छ वायु अधिनियम 1963 में अगले दशकों में कई बार संशोधन किया, जिससे औद्योगिक और ऑटोमोटिव क्षेत्रों में बदलाव को प्रेरित किया गया।
कैसे बहुपक्षीय समझौते बदलाव के लिए मजबूर कर सकते
बहुपक्षीय समझौते जैसे नियामक व्यवस्था प्रतिबंध लगाते हैं। सामान्य रूप से काम करने के बजाय, ये प्रतिबंध स्वच्छ, अधिक टिकाऊ क्रियाकलापों को बढ़ावा देते हैं। वे व्यावसायिक अनिवार्यताओं के साथ पर्यावरणीय जिम्मेदारी को जोड़ते हैं। परिणामस्वरूप, विनियामक परिवर्तन नए बाजार के अवसर खोलते हैं।
इसके अतिरिक्त, इन समझौतों की वजह से होने वाले वैश्विक सहयोग अकसर सीमाओं के परे प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण को प्रोत्साहित करते हैं। इससे स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाने में तेजी आती है।
अब संयुक्त राष्ट्र प्लास्टिक संधि
वैश्विक प्लास्टिक संधि प्लास्टिक प्रदूषण की व्यापक चुनौती का समाधान करेगी, जो हमारे महासागरों, समुद्री जीवन और कार्बन स्तर को प्रभावित करती है। इससे कचरा प्रबंधन पर परिवर्तनकारी नियम लागू होने, एकल-उपयोग प्लास्टिक के उपयोग को कम करने और प्लास्टिक कचरे को खत्म करने और संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग वाली अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों और वस्तुओं के चक्रण को समर्थन मिलने की उम्मीद है।
हम पहले से ही प्लास्टिक विनिर्माण में अधिक टिकाऊ, जैविक तरीके से नष्ट होने वाले या पुनर्चक्रण योग्य प्लास्टिक की ओर बदलाव देख रहे हैं। उद्योग अधिक सर्कुलर व्यवसाय मॉडल विकसित कर रहे हैं जो उत्पादों के पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण और कचरे को कम करने पर जोर देते हैं।
बहुपक्षीय संधि और इसके कार्यान्वयन से समस्या उत्पन्न करने वाली और अनावश्यक प्लास्टिक को कम करने में मदद मिलेगी। इससे उत्पाद आपूर्ति श्रृंखलाओं से हानिकारक रसायनों को हटाने में भी तेजी आएगी।
संयुक्त राष्ट्र प्लास्टिक संधि को 2024 में अंतिम रूप देने का लक्ष्य है। यदि हम इस पर एक वैश्विक समझौता करने में सफल होते हैं, तो हमारे पास दीर्घकालिक भविष्य के लिए प्लास्टिक कचरे को महत्वपूर्ण रूप से कम करने का एक वास्तविक अवसर है।

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