मिल्टन कीनेस (ब्रिटेन), 23 नवंबर (द कन्वरसेशन) फ्लोरेंस बेल ने करीब 80 साल पहले डीएनए की संरचना की खोज का आधार तैयार करके 20वीं सदी के विज्ञान में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया था। हालांकि, जब 23 नवंबर, 2000 को उनकी मृत्यु हुई तो उनके मृत्यु प्रमाणपत्र पर व्यवसाय के सामने ‘गृहिणी’ लिखा था।
यह महिला अनुसंधानकर्ताओं के साथ असमानता का इकलौता उदाहरण नहीं है। दशकों बाद भी महिला शोधकर्ताओं की अनदेखी की जाती है। अध्ययन बताते हैं कि व्यवस्था में गहरी पैठ बनाए हुए समस्याओं की वजह से महिलाएं या तो विज्ञान के क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पातीं या इससे बाहर हो जाती हैं। लेकिन यह स्थिति अपरिहार्य नहीं है। विश्वविद्यालय समान अवसर प्रदान करने के लिए बदलाव कर सकते हैं।
विश्वविद्यालयों में पदोन्नति मानदंड अलग-अलग होते हैं, वहीं अकादमिक क्षेत्र में विश्वसनीयता मुख्य रूप से एक शोधकर्ता द्वारा लिखे गए प्रकाशनों की संख्या के माध्यम से स्थापित की जाती है। इसका मतलब यह है कि शिक्षाविदों पर हरसंभव अधिक से अधिक शोधकार्य प्रकाशित करने का दबाव है, भले ही गुणवत्ता प्रभावित हो।
शैक्षणिक क्षेत्र में महिलाएं यथासंभव अंशकालिक रूप से काम करती हैं, शिक्षण कार्य करती हैं और अतिरिक्त प्रशासनिक कामकाज करती हैं। इसका मतलब हुआ कि महिला अनुसंधानकर्ताओं को अपने अनुसंधान पर ध्यान देने के लिए, अन्वेषण करने के लिए और उनके बारे में प्रकाशन के लिए कम समय मिलता है। जबकि पदोन्नति और वेतन वृद्धि के लिए अनुसंधान प्रकाशनों, अनुदानों और उद्धरणों को ही आधार बनाया जाता है।
लैंगिक असमानता पुरुषों की उच्च प्रकाशन दर और अकादमिक शोध पत्रिकाओं के संपादकीय में पुरुषों का प्रभुत्व होने से स्पष्ट है।
समस्या दूर क्यों नहीं हो रही है।
शिक्षण क्षेत्र में लैंगिक असमानता का चक्र बड़ा जटिल है। बड़ी अनुदान राशि अक्सर बड़े विश्वविद्यालयों को दी जाती है, जहां अनुसंधानकर्ता अपने लेखन और अनुसंधान को प्राथमिकता दे सकते हैं। और इन जगहों पर ऐतिहासिक रूप से प्रतिष्ठित पदों पर और महत्वपूर्ण अनुदान पाने वालों में पुरुष ही रहे हैं।
कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां पूर्वाग्रह, उत्पीड़न और असमानता के कारण महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक संख्या में काम छोड़ देती हैं। इस बारे में और तथ्य जुटाने के लिए मैंने एक महिला का साक्षात्कार लिया तो पता चला कि उसके वरिष्ठ सहकर्मियों ने उसके गर्भवती होने को नकारात्मक तरीके से देखा और मातृत्व अवकाश दिए बिना उसका कामकाज बदल दिया गया। महिला के अनुसार उसे लगा कि उसे अपने कॅरियर और बच्चे में से किसी एक को चुनना है।
वंचित तबकों की महिलाओं के लिए यह लैंगिक पूर्वाग्रह और अधिक हो जाता है। इसमें वर्ग, दिव्यांगता, जिस देश में काम कर रही हैं वहां अल्पसंख्यक जातीय समूह से ताल्लुक रखने और अंग्रेजी प्रथम नहीं होने के आधार पर भी भेदभाव होता है।