देश की खबरें | हाथी पर सवार भाजपा के बागी ने सतना में सांसद गणेश सिंह की बढ़ाई मुश्किलें

सतना, 14 नवंबर  मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र की सतना विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक बागी ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के ‘हाथी’ की सवारी कर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाते हुए चार बार के सांसद गणेश सिंह के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है जो भाजपा के प्रत्याशी हैं।
भाजपा ने जब यहां से गणेश सिंह पर दांव चला तो यहां से पार्टी के प्रमुख दावेदारों में शुमार और जिला इकाई के पूर्व उपाध्यक्ष रत्नाकर चतुर्वेदी ‘शिवा’ भगवा दल की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देकर बसपा में शामिल हो गए। बसपा ने उन्हें सतना से उम्मीदवार भी बना दिया।
सतना के सिविल लाइंस चौराहे के निकट रहने वाले पुष्पेंद्र कुमार (30) ने कहा कि इस विधानसभा सीट पर लोग जाति के आधार पर मतदान करते रहे हैं और इस लिहाज से शिवा का पलड़ा भारी है।
ब्राह्मण, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और वैश्य समुदाय की बहुलता वाली इस सीट पर भाजपा या कांग्रेस के अलावा कोई अन्य दल आज तक जीत नहीं पाया लेकिन बसपा ने कुछ चुनावों में भाजपा और कांग्रेस का खेल जरूर बिगाड़ा है।
कुमार ने कहा, ‘‘भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार ओबीसी समुदाय से हैं जबकि शिवा ब्राह्मण समाज से हैं। वह युवा हैं और क्षेत्र में लोकप्रिय भी हैं। उनके पिता भी भाजपा के बड़े नेता और सहकारी बैंक में विभिन्न पदों पर रहे हैं।’’
स्थानीय लोगों में यह टीस है कि जो रीवा कभी विकास के मामले में सतना से पीछे था, वह आज सतना से बहुत आगे हो गया है।
पन्ना नाका इलाके में रहने वाले भास्कर अग्निहोत्री कहते हैं कि गणेश सिंह पिछले 20 सालों से सतना में ‘राज’ कर रहे हैं लेकिन आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए यहां के युवाओं को जबलपुर, नागपुर या भोपाल-इंदौर जाना पड़ता है।
उन्होंने कहा, ‘‘फिर भी गणेश सिंह को कम नहीं आंका जा सकता। वह यहां की राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी हैं। कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ कुशवाहा की भी अपने समाज के अलावा अन्य वर्गों में अच्छी पैठ है। मुकाबला त्रिकोणीय है।’’
समाजवादी पृष्ठभूमि से आने वाले गणेश सिंह ने जिला पंचायत सदस्य से जिला पंचायत अध्यक्ष तक का सफर तय करने के बाद पहली बार जनता दल के टिकट पर 1993 का विधानसभा चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे। तब उन्हें 11,458 वोट मिले थे। उन्होंने साल 2004 में पहली बार संसद की दहलीज पर कदम रखा और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह दूसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं।
कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ कुशवाहा उर्फ ‘डब्बू भैया’, बसपा के पूर्व सांसद सुखलाल कुशवाहा के बेटे हैं। साल 1996 के लोकसभा चुनाव में सुखलाल (बसपा) ने मध्य के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों अर्जुन सिंह (कांग्रेस) और वीरेंद्र कुमार सकलेचा (भाजपा) को हरा कर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थी। इस चुनाव में सकलेचा दूसरे और सिंह तीसरे स्थान पर थे।
भाजपा ने मध्य प्रदेश में जिन सात सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारा है उनमें गणेश सिंह भी शामिल हैं। उनके समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में भी देख रहे हैं।
एक स्थानीय सीमेंट कंपनी में काम करने वाले रामचरण अहिरवार ने कहा कि इस सीट पर सवर्ण मतदाता ही निर्णायक भूमिका निभाते आए हैं इसीलिए पार्टियां भी सवर्ण प्रत्याशी ही उतारती रही हैं लेकिन इस बार भाजपा-कांग्रेस दोनों ने टिकट के सवर्ण दावेदारों को किनारे कर पिछड़ा कार्ड खेला है जिसे लेकर गैर पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं में असंतोष है।
उन्होंने कहा, ‘‘शिवा भैया ने कोरोना महामारी के समय बहुत काम किया और उनकी लोकप्रियता भी बढ़ी। इसका फायदा उन्हें मिल सकता है क्योंकि बसपा का कोर मतदाता उनके साथ है और ब्राह्मण समाज में भी उनकी खासी पैठ है।’’
सतना विधानसभा सीट पर परंपरागत रूप से लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच रही है लेकिन उत्तर प्रदेश से सटे होने के कारण यहां बसपा का भी प्रभाव है। साल 2003 से 2018 तक हुए चार विधानसभा चुनावों में बसपा उम्मीदवारों को 19 से लेकर 22 प्रतिशत तक मत मिले हैं। बसपा को 2018 में जब सर्वाधिक 22 प्रतिशत मत मिले थे तब यहां से कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाहा जीते थे। इससे पहले के तीन चुनावों में भाजपा के शंकरलाल तिवारी लगातार तीन बार जीते थे।
यह बात भी महत्वपूर्ण है कि सतना विधानसभा सीट पर अब तक हुए 15 चुनावों में 13 बार सवर्ण प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है। कांग्रेस के टिकट पर एक-एक बार अल्पसंख्यक समुदाय के सईद अहमद और ओबीसी के सिद्धार्थ कुशवाहा जीते हैं।
कृष्ण कुमार गुप्ता यूं तो केंद्र व राज्य सरकार के कामकाज की सराहना करते हैं लेकिन कहते हैं कि वह इस दफा अपनी बिरादरी के उम्मीदवार हरिओम गुप्ता के समर्थन में हैं।
हरिओम गुप्ता मैहर के पूर्व भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी के नेतृत्व में गठित विंध्य जनता पार्टी (वीजेपी) के उम्मीदवार हैं। वैश्य समाज के जिला अध्यक्ष रहे त्रिपाठी ने भाजपा से टिकट ना मिलने पर वीजेपी का गठन किया। वह खुद इसी जिले की मैहर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
कृष्ण कुमार गुप्ता ने बताया, ‘‘कुशवाहा का मजबूत पक्ष यह है कि उन्हें मुस्लिम-कुशवाहा‌ समाज का वोट एकतरफा मिल रहा है। अन्य समाज में भी उनकी पकड़ मजबूत है।’’
उन्होंने बताया कि गणेश सिंह, कुर्मी (पटेल) जाति से आते है जिनकी संख्या लोकसभा क्षेत्र के मुकाबले इस विधानसभा क्षेत्र में बहुत कम है।
राजेन्द्र कुमार अखबार बेचते हैं और सतना रेलवे स्टेशन के नजदीक एक छोटी सी दुकान लगाते हैं। वह कहते हैं कि भाजपा के पूर्व विधायक शंकरलाल तिवारी इस चुनाव से दूरी बनाए हुए हैं वहीं कांग्रेस के कुछ स्थानीय नेता खामोश हैं जबकि यहां से कांग्रेस के विधायक रहे सईद अहमद बसपा में जा चुके हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है। बसपा, सवर्ण मतदाताओं के वोट में जितनी सेंध लगाएगी, उतना भाजपा को फायदा और कांग्रेस को नुकसान होगा।’’
सतना सीट पर भाजपा, कांग्रेस और बसपा के शीर्ष नेतृत्व की भी नजरें हैं। बसपा अध्यक्ष मायावती, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी यहां चुनाव प्रचार कर चुके हैं।
मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को मतदान होगा और नतीजे तीन दिसंबर को आएंगे।

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