देश की खबरें | अदालत ने रैपिडो कंपनी को दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सुलभ बनाने की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा

नयी दिल्ली, नौ नवंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने ऐप आधारित बाइक टैक्सी कंपनी रैपिडो को दिव्यांग व्यक्तियों के लिए पूरी तरह से सुलभ बनाने के निर्देश देने संबंधी याचिका पर बृहस्पतिवार को केंद्र से जवाब तलब किया।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तीकरण विभाग और रोपेन ट्रांसपोर्टेशन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड (रैपिडो) को नोटिस जारी किया और उन्हें याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा।
उच्च न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 20 दिसम्बर की तारीख निर्धारित की।
अदालत दिव्यांगों के अधिकार के लिए काम करने वाले अमर जैन और दृष्टिबाधित बैंकर दिप्तो घोष चौधरी की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें रैपिडो को तत्काल सुगम्यता ऑडिट कराने, समयबद्ध तरीके से उपलब्धता बाधाओं का निपटारा करने और ‘शुरू से अंत तक’ व्यापक और समग्र उपलब्धता सुनिश्चित करने के निर्देश की मांग की गई थी।
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता रैपिडो मोबाइल राइड एप्लिकेशन पर भरोसा करते हैं, लेकिन यह विकलांग व्यक्तियों की सुगम्यता संबंधी जरूरतों को पूरा करने में विफल रहा है।
इसमें कहा गया है कि यह मुद्दा केवल रैपिडो ऐप तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कुछ ‘कैब एग्रीगेटर’ तक फैला हुआ है, जिनके पास दिव्यांग जनों को समायोजित करने के लिए कोई प्रणाली नहीं है।
अधिवक्ताओं राहुल बजाज और महूर गनी के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि यह मामला परिवहन मंत्रालय की उस विफलता को उजागर करता है, जिसके तहत मंत्रालय को यह व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए एक आदेश जारी करना था, जिसके अंतर्गत सभी ‘कैब एग्रीगेटर’ द्वारा दिव्यांग व्यक्तियों को अपनी सेवाओं की परिचालनात्मक और डिजिटल पहुंच प्रदान किया जाना था।
याचिका में कहा गया है, ‘‘प्रतिवादी संख्या-दो (परिवहन मंत्रालय) को कैब एग्रीगेटर के लिए एक मजबूत कानूनी आदेश और परिचालन सलाह का निर्देश दिया जाए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी सेवाएं दिव्यांगों के अनुकूल हों।’’
इसमें कहा गया है कि बाइक टैक्सी एग्रीगेटर (रैपिडो) के पास अपने चालकों को दिव्यांग व्यक्तियों की जरूरतों के बारे में संवेदनशील बनाने के लिए कोई कार्यक्रम नहीं है, ताकि वे उचित तौर पर दिव्यांगों की समस्याओं का निपटारा कर सकें।
याचिका में कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ता संख्या-दो (घोष) को एक ड्राइवर ने उस वक्त बिठाने से मना कर दिया जब उसे पता चला कि वह (घोष) दिव्यांग हैं और इस तरह के अनुभव दिव्यांग व्यक्तियों की गरिमा को कमजोर करते हैं।’’

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