नयी दिल्ली, आठ नवंबर उच्चतम न्यायालय ने 2008 के जयपुर सिलसिलेवार विस्फोट मामले में निचली अदालत से मौत की सजा पाने वाले चार लोगों को बरी करने के उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने की राजस्थान सरकार की याचिका को बुधवार को ”अनसुना” करार दिया और कहा कि यह देखने की जरूरत है कि क्या निर्णय “गलत” और “विकृत” था।
तेरह मई 2008 को जयपुर तब दहल गया था, जब माणक चौक खंडा, चांदपोल गेट, बड़ी चौपड़, छोटी चौपड़, त्रिपोलिया गेट, जौहरी बाजार और सांगानेरी गेट पर एक के बाद एक सिलसिलेवार बम विस्फोट हुए थे। विस्फोटों में 71 लोग मारे गए थे और 185 लोग घायल हुए थे।
न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने राजस्थान सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा, “बरी करने के आदेश पर रोक लगाने का आपका आग्रह अनसुना है। आपके असाधारण निवेदन पर विचार करने के लिए, हमें यह देखना होगा कि क्या फैसला प्रथम दृष्टया ग़लत और विकृत है।”
पीठ ने वेंकटरमणी से कहा कि जब किसी अदालत द्वारा बरी किया जाता है तो आरोपियों की बेगुनाही की धारणा मजबूत हो जाती है।
वेंकटरमणी वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष सिंघवी के साथ राज्य सरकार की ओर से पेश हुए। राजस्थान सरकार ने चार आरोपियों को बरी करने के फैसले को चुनौती देते हुए चार अलग-अलग अपील दायर की हैं।
बरी किए गए लोगों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन और अन्य वकील ने उन पर लगाई गई शर्त का हवाला दिया कि वे जयपुर में आतंकवाद रोधी दस्ते के थाने में दैनिक आधार पर सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे।
पीठ ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि यह शर्त उनके आवागमन पर “अनुचित प्रतिबंध” लगाती है। इसने यह भी कहा कि वह सुनवाई की अगली तारीख पर इस पर विचार करेगी।
वेंकटरमणी ने कहा कि हालांकि उच्च न्यायालय द्वारा बरी कर दिया गया, लेकिन “इन लोगों को स्वतंत्र रूप से घूमने की अनुमति नहीं दी जा सकती और इसीलिए हम उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील पर फैसला आने तक संबंधित निर्णय पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं”।
सिंघवी ने याचिका में कहा कि निचली अदालत से संबंधित मामले का पूरा रिकॉर्ड तलब करने के बावजूद, सभी दस्तावेज अभी तक शीर्ष अदालत तक नहीं पहुंचे हैं।
पीठ ने एक बार फिर रजिस्ट्री को निचली अदालत से मामले के मूल रिकॉर्ड तलब करने का निर्देश दिया और कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने के आवेदन पर जनवरी के दूसरे सप्ताह में विचार किया जाएगा।
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि गवाही और अन्य दस्तावेजों का अंग्रेजी अनुवाद केस फाइल में शामिल किया जाए।
इसने 17 मई को उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और कहा था कि वह दोषी नहीं ठहराए गए लोगों को सुने बिना इस तरह की “कठोर कार्रवाई” के लिए आदेश पारित नहीं कर सकती।
हालाँकि, शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के 29 मार्च के फैसले में दिए गए उस निर्देश पर रोक लगा दी थी, जिसमें राज्य के पुलिस महानिदेशक को “घटिया जांच” को लेकर जांच अधिकारी और अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ जांच का आदेश देने के लिए कहा गया था।
इसने कुछ शर्तें लगाई थीं और निर्देश दिया था कि बरी किए गए चार लोग यदि किसी और मामले में वांछित न हों तो उन्हें रिहा कर दिया जाए।
शीर्ष अदालत ने चारों को अपने पासपोर्ट जमा करने और जेल से रिहा होने पर जयपुर में आतंकवाद रोधी दस्ते के थाने में दैनिक आधार पर सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को कहा था।
राजस्थान सरकार ने 25 अप्रैल को उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए अपील दायर की थी। पीड़ित परिवारों ने भी फैसले के खिलाफ अपील दायर की है।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने 29 मार्च को चार आरोपियों को मौत की सजा देने के निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया था और “घटिया जांच” के लिए जांच एजेंसियों की आलोचना की थी। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा पांचवें आरोपी को बरी किए जाने की भी पुष्टि की थी।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह सच हो सकता है कि यदि किसी जघन्य अपराध में आरोपियों को सजा नहीं मिलती है या उन्हें बरी कर दिया जाता है, तो सामान्य रूप से समाज और विशेष रूप से पीड़ित परिवारों को एक प्रकार की पीड़ा एवं निराशा हो सकती है। इसने कहा था कि हालाँकि, कानून अदालतों को नैतिक विश्वास या केवल संदेह के आधार पर आरोपी को दंडित करने की अनुमति नहीं देता है।
दिसंबर 2019 में, एक विशेष अदालत ने चार लोगों-मोहम्मद सैफ, मोहम्मद सलमान, सैफुर्रहमान और मोहम्मद सरवर आज़मी को मौत की सजा सुनाई थी तथा शाहबाज हुसैन को बरी कर दिया था।
राज्य सरकार ने जहां शाहबाज हुसैन को बरी करने के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, वहीं मौत की सजा पाने वाले चारों लोगों ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी।