देश की खबरें | न्यायपालिका व वकील पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के न्यायालय के आदेशों को लागू नहीं कर सकते, सामाजिक जागरुकता की आवश्यकता :विशेषज्ञ

नयी दिल्ली, 13 नवंबर न्यायपालिका और वकील वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए पटाखों और पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाने के उच्चतम न्यायालय के आदेशों को लागू नहीं कर सकते हैं और इससे बड़े पैमाने पर जागरूकता पैदा करके ही निपटा जा सकता है। यह बात विधि विशेषज्ञों ने कही।
शीर्ष अदालत ने बेरियम युक्त पटाखों के निर्माण और बिक्री पर प्रतिबंध लगाया लगाया था, लेकिन उसके हालिया आदेश का दिवाली पर देश भर में उल्लंघन किया गया, जिससे वायु गुणवत्ता सूचकांक खराब हो गया।
पटाखों की बिक्री और निर्माण पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह करने वाली वाली याचिका के मुख्य वादी अर्जुन गोपाल और अन्य के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने अदालत के हालिया आदेश के घोर उल्लंघन के लिए कानून लागू करने वाली एजेंसियों के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अवमानना याचिका दायर करने का फैसला किया है।
न्यायिक आदेशों के उल्लंघन पर वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि इस प्रकार के मामलों में कोई अवमानना काम नहीं करेगी, जहां वायु प्रदूषण में वृद्धि के लिए कई चीज़ें ज़िम्मेदार हों।
उन्होंने कहा कि यह एक सामाजिक मुद्दा है, जिससे साल भर बड़े पैमाने पर सामाजिक जागरूकता पैदा करके प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है।
द्विवेदी ने कहा, “ये सामाजिक मुद्दे हैं। अवमानना की कार्रवाई बहुत कठिन लगती है। वे (उच्चतम न्यायालय) कितने लोगों को और किस-किस को पकड़ेंगे। मूल रूप से यह सामाजिक जागरूकता का मुद्दा है। लोगों को अधिक जागरूक किया जाना चाहिए। मुझे नहीं लगता है कि इसमें अदालतों और वकीलों की कोई ज्यादा भूमिका है।”
द्विवेदी ने कहा कि इसमें बहुत सारे अपराधी – निर्माता, विक्रेता, खुदरा विक्रेता, खरीदार हैं और वे भी हैं जो पटाखे फोड़ रहे हैं।
अधिवक्ता और पर्यावरणविद् गौरव कुमार बंसल भी द्विवेदी से सहमत दिखे। उन्होंने कहा कि वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए सामाजिक जागरूकता अभियान की जरूरत है और सिर्फ उच्चतम न्यायालय के आदेश बढ़ते खतरे पर अंकुश नहीं लगा सकते हैं।
बंसल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने पटाखों के मामले में कई आदेश पारित किए हैं, लेकिन इसे लागू करना कार्यपालिका का काम है। उन्होंने कहा कि अदालत के आदेशों के कार्यान्वयन में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पुलिस अधिकारियों की बड़ी भूमिका है।
द्विवेदी ने इस बात को रेखांकित किया कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक बहु-आयामी रणनीति की जरूरत है, क्योंकि सिर्फ पटाखे फोड़ना प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कारक नहीं है।
उन्होंने कहा, “ वोट की खातिर आप किसानों को पराली जलाने से नहीं रोक पा रहे हैं। आप उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते। ऐसा हर साल होता है। इसलिए यह बहुत मुश्किल है…यह सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति का मुद्दा नहीं है। प्रश्न विकल्प ढूंढने का भी है।”
वरिष्ठ अधिवक्ता ने बताया कि वाहनों से निकलने वाला धुआं भी प्रदूषण को बढ़ाने वाला एक प्रमुख कारक है।
उन्होंने कहा, “ पटाखे प्रदूषण का एकमात्र स्रोत नहीं हैं…वाहनों, खासकर कारों की संख्या और उनसे निकलने वाले धुएं पर गौर करें। एक-एक घर में चार-पांच कारें हैं। कारों की संख्या इस तरह बढ़ती जा रही है कि लोग उन्हें अपने घरों के अंदर खड़ा नहीं कर पा रहे हैं, बल्कि सड़कों पर खड़ा कर रहे हैं। सड़कें जाम हैं। इस बढ़ते प्रदूषण में कई कारक योगदान देते हैं।”
वरिष्ठ अधिवक्ता अरुणाभ चौधरी ने कहा, “साल के इस समय में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) का स्तर बढ़ने के कई कारण हैं, जिनमें पड़ोसी राज्यों में पराली जलाना, पटाखे फोड़ना आदि शामिल हैं। चूंकि सरकारें प्रदूषण को नियंत्रित करने में विफल रही हैं – यह सभी सरकारों के लिए है। मैं किसी विशेष सरकार को दोष नहीं दे रहा हूं । नागरिकों ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और जब शीर्ष अदालत के आदेशों का उल्लंघन होता है, तो एक नागरिक के तौर पर मुझे दुख होता है।”
दिल्ली में रविवार को दिवाली के दिन आठ वर्षों में सबसे बेहतर वायु गुणवत्ता दर्ज की गई थी। इस दौरान 24 घंटे का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) अपराह्न चार बजे 218 दर्ज किया गया था।
हालांकि, रविवार देर रात तक पटाखे फोड़ने से प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी हुई।
सोमवार सुबह सात बजे एक्यूआई 275 (खराब श्रेणी) पर था और शाम चार बजे तक धीरे-धीरे बढ़कर 358 हो गया।
एक्यूआई शून्य से 50 के बीच ‘अच्छा’, 51 से 100 के बीच ‘संतोषजनक’, 101 से 200 के बीच ‘मध्यम’, 201 से 300 के बीच ‘खराब’, 301 से 400 के बीच ‘बहुत खराब’ और 401 से 450 के बीच ‘गंभीर’ माना जाता है। एक्यूआई के 450 से ऊपर हो जाने पर इसे ‘अति गंभीर’ माना जाता है।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *