कोहिमा, नौ नवंबर नगालैंड विधानसभा ने शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीट आरक्षित करने संबंधी विधेयक बृहस्पतिवार को आम सहमति से पारित कर दिया।
इसके साथ ही एक विवादास्पद मुद्दे का समाधान हुआ और दो दशक बाद राज्य में नगर निकाय चुनावों का मार्ग प्रशस्त हो गया।
मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार महिलाओं के लिए यूएलबी में एक तिहाई आरक्षण दिए जाने वाला प्रावधान विधेयक में किया गया है।
रियो ने कहा कि पहले इस तरह के आरक्षण का विरोध करने वाले शीर्ष आदिवासी निकाय ने भी अब इसे स्वीकार कर लिया है और राज्य निर्वाचन आयोग (एसईसी) जल्द ही नगर निकाय चुनावों की तारीखों की घोषणा करेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘यह कानून अंत नहीं है, बल्कि सिर्फ एक शुरुआत है।” उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि महिलाएं शहरी स्थानीय निकायों के प्रशासन में भागीदारी करें।’’
पूर्वोत्तर राज्य में यूएलबी चुनाव लंबे समय से लंबित हैं जहां आखिरी चुनाव 2004 में हुए थे।
प्रमुख नागरिक समाज संगठन, ‘नगा मदर्स एसोसिएशन’ और महिला विधायकों ने विधेयक के पारित होने पर प्रसन्नता जताई।
मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने सत्र के दौरान सदन में नगालैंड नगर निकाय विधेयक 2023 पेश करते हुए कहा कि नए विधेयक में भूमि और भवनों पर करों से संबंधित प्रावधानों को बाहर रखा गया है।
उन्होंने कहा कि महिलाओं के लिए विधेयक में यूएलबी में सीट के एक-तिहाई आरक्षण का प्रावधान उच्चतम न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों और राज्य में शीर्ष जनजातीय निकायों द्वारा भी इसे स्वीकार किए जाने के मद्देनजर रखा गया है।
हालांकि, रियो ने कहा कि महिलाओं के लिए यूएलबी में अध्यक्ष के पदों पर एक तिहाई आरक्षण का प्रावधान जो कि पहले नगर निकाय अधिनियम में था, उसे संबंधित विधेयक में शामिल नहीं किया गया है।
रियो ने कहा कि नगालैंड में यूएलबी चुनाव कराने के लिए पिछले दो दशकों में कई प्रयास किए गए लेकिन सरकार को कुछ ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं’’ का सामना करना पड़ा जिसके कारण वर्तमान नगालैंड नगर निकाय विधेयक, 2023 का मसौदा तैयार करना पड़ा।
वर्ष 2017 में जब टी आर जेलियांग के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने चुनाव कराने की कोशिश की तो हिंसा हुई थी। दो व्यक्ति मारे गए थे और सरकारी संपत्ति और कार्यालय क्षतिग्रस्त हो गए।
इस साल मार्च में नेफ्यू रियो के नेतृत्व वाली सर्वदलीय सरकार ने भी 33 प्रतिशत महिला आरक्षण के साथ चुनाव कराने की घोषणा की थी। हालांकि, फिर से कड़े प्रतिरोध के बाद, सरकार ने चुनाव रद्द कर दिया।
विधानसभा ने अपने मार्च सत्र के दौरान, नगालैंड नगर निकाय अधिनियम, 2001 को निरस्त कर दिया और 33 प्रतिशत महिला आरक्षण और भूमि एवं संपत्तियों पर कर पर आदिवासी निकायों और नागरिक समाज संगठनों के विचारों को शामिल करते हुए एक नया कानून लाने का फैसला किया था।
बारह सितंबर को सदन में एक नया विधेयक पेश किया गया और इसे प्रवर समिति को भेजा गया, जिसने विधेयक की जांच की और इसमें कुछ खंडों को शामिल करने की सिफारिश की। विधानसभा ने बृहस्पतिवार को विधेयक को पारित कर दिया।
रियो ने कहा कि किसी भी नगरपालिका या नगर परिषद का सदस्य बनने के लिए केवल राज्य के मूल निवासियों को ही पात्र बनाने की सिफारिश की गई है, और यह भी कि नगरपालिका अधिनियम की हर 10 वर्षों के बाद समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘अब हमारे पास राज्य में 39 शहरी स्थानीय निकाय हैं। हमें इस बढ़ती शहरी आबादी को आवश्यक शहरी बुनियादी ढाँचा और शहरी सुविधाएं स्थानीय स्वशासन के माध्यम से प्रदान करनी हैं।’’
इससे पहले, उपमुख्यमंत्री टी आर जेलियांग ने विधानसभा की प्रवर समिति की रिपोर्ट पेश की जिसे विधेयक की पड़ताल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
विधानसभा में सभी राजनीतिक दलों – एनडीपीपी, भाजपा, राकांपा, एनपीपी, एलजेपी (रामविलास), नगा पीपुल्स फ्रंट, आरपीआई (आठवले), जद(यू) और निर्दलीय – के नेताओं ने चर्चा में भाग लिया और विधेयक के पारित होने का समर्थन किया।
मोकोकचुंग जिले के एओ लोगों के आदिवासी संगठन एओ सेंडेन के 33 फीसदी महिला आरक्षण पर सहमत नहीं होने पर रियो ने कहा कि सरकार उनसे दोबारा बात करेगी और उन्हें अपने साथ लेगी।
प्रवर समिति ने छह नवंबर को शीर्ष जनजातीय निकायों के साथ एक परामर्श बैठक की थी और विवादास्पद मुद्दों पर आम सहमति बनाई थी।
नगा मदर्स एसोसिएशन की अध्यक्ष विलानुओ योहोम ने ‘पीटीआई-’ से कहा, ”हमें खुशी है कि नगा पुरुषों ने महसूस किया है कि महिलाओं को भी नगरपालिका और नगर परिषदों के निर्णय लेने वाले निकायों में संवैधानिक अधिकारों की आवश्यकता है।’’