देश की खबरें | स्नातक, पीजी में प्रथम श्रेणी वाले ही अब बनेंगे आईआईएम निदेशक; राष्ट्रपति भंग कर सकते हैं बोर्ड

नयी दिल्ली, 13 नवंबर केंद्र ने भारतीय प्रबंध संस्थानों (आईआईएम) में निदेशकों की नियुक्ति के लिए नये नियम अधिसूचित किये हैं, जिसके तहत आवदेकों के पास स्नातक और स्नातकोत्तर (पीजी) की प्रथम श्रेणी की डिग्री के साथ-साथ किसी प्रतिष्ठित संस्थान से पीएचडी या समकक्ष उपाधि को अनिवार्य कर दिया गया है।
साथ ही, अब राष्ट्रपति इन प्रतिष्ठित संस्थानों के ‘विजिटर’ होंगे, जिनके पास निदेशक मंडल का अध्यक्ष नियुक्त करने, निदेशकों को नियुक्त करने या हटाने, और कर्तव्य निर्वहन नहीं करने या उनके (विजिटर के) निर्देशों का पालन नहीं करने के लिए बोर्ड (निदेशक मंडल) को भंग करने की शक्ति होगी।
नये नियमों के तहत, आईआईएम निदेशक के लिए अर्हता के तहत अब ‘‘स्नातक और स्नातकोत्तर, दोनों में प्रथम श्रेणी की डिग्री, और किसी प्रतिष्ठित संस्थान से पीएचडी या समकक्ष उपाधि’’ के साथ विशिष्ट अकादमिक रिकार्ड जरूरी होगा।
पहले, ‘‘पीएचडी या समकक्ष उपाधि के साथ विशिष्ठ अकादमिक रिकॉर्ड’’ की अर्हता का उपयोग किया जाता था और यह उल्लेख नहीं किया गया था कि डिग्री किस श्रेणी की होनी चाहिए।
हाल में, आईआईएम-रोहतक निदेशक के रूप में धीरज शर्मा की नियुक्ति को लेकर विवाद पैदा हुआ था क्योंकि उन्होंने स्नातक द्वितीय श्रेणी के साथ उत्तीर्ण किया था।
नये नियमों के मुताबिक, किसी भी आईआईएम के निदेशक की नियुक्ति में ‘विजिटर’ का फैसला अंतिम होगा। ‘विजिटर’ बोर्ड द्वारा सिफारिश किये गए नामों में से एक को नामित करेंगे और इसे नियुक्ति के लिए बोर्ड को भेजेंगे।
अब से पहले, निदेशक की नियुक्ति के लिए बोर्ड ही पूरी तरह से जिम्मेदार होता था।
आईआईएम में ‘विजिटर’ की अवधारणा का पहली बार जिक्र 2015 में केंद्र द्वारा जारी किये गये मौजूदा अधिनियम के मसौदे में किया गया था।
राष्ट्रपति सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) के ‘विजिटर’ हैं तथा उनके कुलपतियों व निदेशकों की नियुक्ति करते हैं।
नये नियमों के तहत, ‘विजिटर’ के पास अब तीन परिस्थितियों में किसी भी समय बोर्ड को भंग करने की शक्ति होगी। पहला, यदि ‘विजिटर’ को ऐसा लगता हो कि बोर्ड अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में अक्षम है, दूसरा-इस अधिनियम के तहत उनके द्वारा दिये गए निर्देशों का पालन करने में निरंतर नाकाम रहे, और तीसरा-यदि जनहित में जरूरी हो।
पहले, बोर्ड को भंग करने के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं था।

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