देश की खबरें | कर्नाटक में राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लिंगायत समुाय ने ‘जाति जनगणना’ को अवैज्ञानिक बताया

बेंगलुरु, नौ नवंबर वोक्कालिगा समुदाय के बाद अब कर्नाटक के दूसरे प्रमुख समुदाय लिंगायत ने भी बृहस्पतिवार को सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण, जिसे ‘जाति जनगणना’ के नाम से जाना जाता है, को अवैज्ञानिक बताते हुए खारिज कर दिया और नए सिरे से सर्वेक्षण कराने की मांग की।
यह निर्णय अखिल भारतीय वीरशैव महासभा की बैठक में लिया गया, जो वीरशैव लिंगायतों की सर्वोच्च संस्था है।
साल 2015 में तत्कालीन सिद्धरमैया नीत कांग्रेस सरकार ने राज्य में 170 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण शुरू किया था जिसकी रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं की गयी है।
राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को इसके तत्कालीन अध्यक्ष एच कंथाराज के नेतृत्व में जाति आधारित जनगणना की रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा गया था।
बिहार सरकार द्वारा हाल में जाति जनगणना के निष्कर्ष जारी किये जाने के बाद सिद्धरमैया सरकार पर कई वर्गों से दबाव है कि राज्य के सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट को सार्वजनिक की जाए।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने हाल में कहा था कि रिपोर्ट मिलने के बाद वह फैसला लेंगे जिसके इस महीने के अंत में मिलने की उम्मीद है।
हालांकि दो प्रमुख समुदायों द्वारा खारिज किये जाने के बाद कांग्रेस सरकार के लिए यह मुद्दा परेशानी वाला बन सकता है और टकराव की स्थिति बन सकती है, जहां दलित और अन्य पिछड़े वर्ग इसे सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं।
महासभा के अध्यक्ष और वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं विधायक शामनुरू शिवशंकरप्पा ने कहा, ‘‘हम खुश नहीं हैं। यह वैज्ञानिक नहीं है। यह यहां बैठे-बैठे किया गया और वे घर-घर नहीं गये। आठ साल पहले यह किया गया था। इसलिए हमारी राय है कि इसे एक बार फिर वैज्ञानिक तरीके से किया जाना चाहिए।’’

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