देश की खबरें | शिअद उम्मीदवार हरजिंदर सिंह धामी तीसरी बार एसजीपीसी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए

अमृतसर, आठ नवंबर शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार हरजिंदर सिंह धामी को बुधवार को एक बार फिर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया है। धामी इस पद पर लगातार तीसरी बार निर्वाचित हुए हैं।
एसजीपीसी अध्यक्ष पद के लिए हुए मतदान में, धामी ने बलबीर सिंह घुनस को हराया, जिन्हें शिअद (संयुक्त) अध्यक्ष सुखदेव सिंह ढींढसा और एसजीपीसी की पूर्व अध्यक्ष बीबी जागीर कौर ने मैदान में उतारा था।
एसजीपीसी अध्यक्ष के लिए चुनाव में 137 मतों में से धामी को 118 वोट मिले जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी घुनस को 17 मतों से संतोष करना पड़ा। दो वोट अवैध घोषित किये गये।
एसजीपीसी सदस्य हरभजन सिंह मसाना को निर्विरोध वरिष्ठ उपाध्यक्ष निर्वाचित घोषित किया गया। गुरबख्श सिंह खालसा को कनिष्ठ उपाध्यक्ष और भाई राजिंदर सिंह मेहता को शीर्ष गुरुद्वारा निकाय का महासचिव चुना गया है।
एसजीपीसी की कार्यकारी समिति के 11 सदस्यों में मोहन सिंह बंगी, रघबीर सिंह सहारनमाजरा, जसमेर सिंह लाछरू, खुशविंदर सिंह भाटिया, बीबी हरदीप कौर खोख, इंद्रमोहन सिंह लखमीरवाला, गुरप्रीत सिंह झब्बर, बीबी मलकीत कौर कमालपुर, अमरजीत सिंह भलाईपुर, बीबी जसपाल कौर तथा जसवन्त सिंह पुरैन शामिल हैं।
बाद में पत्रकारों से बात करते हुए धामी ने कहा कि गुरु के आशीर्वाद से उन्हें तीसरी बार यह सेवा मिली है।
उन्होंने कहा कि एसजीपीसी के आम चुनाव आ रहे हैं और चाहे केंद्र सरकार हो या पंजाब सरकार, मतदाता पंजीकरण प्रक्रिया में हस्तक्षेप किया जा रहा है।
एक सवाल के जवाब में एसजीपीसी अध्यक्ष ने कहा, ‘‘एसजीपीसी पदाधिकारियों के लिए आज आए चुनाव के नतीजे बताते हैं कि पूरी पार्टी एकजुट है।’’
धामी ने यह भी कहा कि सिख समुदाय के सामने सिख कैदियों का मसला एक बड़ा मुद्दा है, जिसके लिए उचित कदम उठाए जाएंगे।
दूसरी ओर, भारत और कनाडा के बीच जारी राजनयिक विवाद के बीच, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के ‘जनरल हाउस’ ने बुधवार को एक प्रस्ताव पारित कर दोनों देशों से अपने संबंधों में कड़वाहट दूर करने का आग्रह किया।
एसजीपीसी के ‘जनरल हाउस’ ने सिख कैदियों की रिहाई, सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर और एसजीपीसी की मतदाता पंजीकरण प्रक्रिया को सरल बनाने सहित कुछ मुद्दों पर भी प्रस्ताव पारित किया।
भारत-कनाडा विवाद पर प्रस्ताव में कहा गया है कि दोनों देशों के बीच की स्थिति के कारण, सिखों और पंजाबियों को बिना किसी कारण के घृणा का सामना करना पड़ रहा है। इसमें कहा गया है कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है, जिस पर दोनों सरकारों को गंभीरता से विचार करना चाहिए।

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