विदेश की खबरें | ‘टू प्लस टू’ एक मजबूत भारत-अमेरिका साझेदारी को गहरा करने का वादा करता है: विशेषज्ञ

वाशिंगटन, आठ नवंबर एक विशेषज्ञ के अनुसार, भारत और अमेरिका के बीच ‘टू प्लस टू’ मंत्रिस्तरीय वार्ता दोनों देशों की वैश्विक साझेदारी के प्रति अटूट प्रतिबद्धता और स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत के लिए उनके साझा दृष्टिकोण की पुष्टि करने के वास्ते एक मंच के रूप में काम करेगी।
यह बैठक इस सप्ताह नयी दिल्ली में आयोजित की जाएगी।

विदेश मंत्रालय ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन अपने भारतीय समकक्ष विदेश मंत्री एस. जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ इस सप्ताह पांचवीं ‘टू प्लस टू’ मंत्रिस्तरीय वार्ता के लिए भारत जाएंगे।

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मंत्रालय ने कहा कि ब्लिंकन और ऑस्टिन अन्य वरिष्ठ भारतीय अधिकारियों के साथ द्विपक्षीय एवं वैश्विक चिंताओं एवं हिंद-प्रशांत में जारी गतिविधियों पर चर्चा करेंगे।

एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के साउथ एशिया इनिशिएटिव्स की निदेशक फरवा आमेर ने कहा कि एक जटिल और लगातार विकसित हो रहे वैश्विक परिदृश्य की पृष्ठभूमि में यह संवाद अमेरिका और भारत की वैश्विक साझेदारी और एक स्वतंत्र एवं मुक्त हिंद-प्रशांत के लिए उनकी साझा दृष्टि के प्रति अटूट प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के मंच के रूप में काम करेगा।

उन्होंने कहा, ‘‘आगामी पांचवीं अमेरिका-भारत ‘टू प्लस टू’ मंत्रिस्तरीय वार्ता एक मजबूत साझेदारी को गहरा करने का वादा करती है जिसमें खासकर रक्षा सहयोग के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है। इस सप्ताह भारत में होने वाली ‘टू प्लस टू’ मंत्रिस्तरीय वार्ता में दोनों देशों के शीर्ष अधिकारी शामिल होंगे।’’

हिंद-प्रशांत एक जैव-भौगोलिक क्षेत्र है, जिसमें हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर सहित पश्चिमी और मध्य प्रशांत महासागर शामिल है।

अमेरिका, भारत और कई अन्य विश्व शक्तियां संसाधन संपन्न क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधि की पृष्ठभूमि में एक स्वतंत्र, खुले और संसाधन संपन्न हिंद-प्रशांत को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर चर्चा कर रही हैं।

चीन विवादित दक्षिण चीन सागर के लगभग पूरे हिस्से पर दावा करता है, जबकि ताइवान, फिलीपीन, ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम सभी इसके कुछ हिस्सों पर दावा करते हैं। बीजिंग ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य प्रतिष्ठान बनाए हैं। चीन का पूर्वी चीन सागर में जापान के साथ भी क्षेत्रीय विवाद है।

आमेर ने कहा कि बातचीत एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, जहां यूक्रेन में संकट और इजराइल-हमास संघर्ष की छाया मंडरा रही है।

आमेर ने कहा कि ये संघर्ष सीधे तौर पर अमेरिका-भारत संबंधों से जुड़े नहीं हो सकते हैं, लेकिन वे एक ऐसी पृष्ठभूमि बनाते हैं जो दोनों देशों की रणनीतिक गतिशीलता और वैश्विक परिप्रेक्ष्य को प्रभावित करती है। उन्होंने कहा कि वार्ता के दौरान इन संकटों पर चर्चा होने की संभावना है।

उन्होंने कहा, ‘‘इजराइल-हमास संघर्ष पर भारत ‘क्वाड’ देशों के साथ कहीं अधिक जुड़ा हुआ है, जो गंभीर अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों पर समान विचारधारा वाले भागीदारों के साथ भारत के गहरे जुड़ाव का संकेत है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इसके अलावा अमेरिका भारत-कनाडा विवाद मामले में अंतरराष्ट्रीय समझौतों का पालन करने के महत्व पर जोर देते हुए कनाडा की जांच में फिर से भारत के सहयोग का आह्वान कर सकता है। यह कूटनीतिक उलझन एक चुनौती पैदा कर सकती है, लेकिन यह इस बात की याद भी दिला सकता है कि विशिष्ट मुद्दों पर मतभेद से द्विपक्षीय संबंध पटरी से नहीं उतरेंगे।’’

आमेर ने कहा, ‘‘इन चुनौतियों से परे संवाद का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के दायरे का विस्तार करना है। यह केवल रक्षा के बारे में नहीं है बल्कि इसमें जलवायु, ऊर्जा, स्वास्थ्य, आतंकवाद विरोधी, शिक्षा और लोगों से लोगों के बीच संबंध भी शामिल है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान में रक्षा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और सह-उत्पादन पर ध्यान केंद्रित है, जो सैन्य क्षमताओं को बढ़ावा देने में नवाचार के महत्व को रेखांकित करता है। क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी पर पहल (आईसीईटी) के एजेंडे में होने की उम्मीद है, जो भारत-अमेरिका रक्षा त्वरित पारिस्थितिक तंत्र (इंडस-एक्स) के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देने वाला है।’’

उन्होंने कहा कि सीओपी28 से पहले जलवायु कार्रवाई को बढ़ाने की अनिवार्यता भी बातचीत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकती है। उन्होंने कहा कि विकसित देशों को 2050 तक शून्य कार्बन-उत्सर्जन देश बनने का भारत का आह्वान जलवायु परिवर्तन की तत्काल चुनौती से निपटने में साझा जिम्मेदारी को रेखांकित करता है।

 

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