देश की खबरें | अतिक्रमण मुक्त वन भूमि को आरक्षित घोषित करें या फिर अवमानना को तैयार रहें: दिल्ली उच्च न्यायालय

नयी दिल्ली, आठ नवंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को राज्य सरकार के मुख्य सचिव को चेतावनी दी कि अगर उन्होंने दो सप्ताह के भीतर राष्ट्रीय राजधानी में अतिक्रमण मुक्त वन भूमि को ‘‘आरक्षित वन’’ के रूप में घोषित नहीं किया तो उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की जाएगी।
न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने कहा कि अधिकारी राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के 2021 के आदेश का पालन नहीं करने के लिए अदालत की अवमानना के लिए उत्तरदायी है, जिसमें मुख्य सचिव के माध्यम से दिल्ली सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया था कि ‘‘गैर विवादित’’ वन भूमि के संबंध में भारतीय वन अधिनियम की धारा 20 (वन आरक्षित घोषित करने की अधिसूचना) के तहत अपेक्षित अधिसूचना तीन महीने में जारी की जाए।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर धारा 20 के तहत दो सप्ताह के भीतर अधिसूचना जारी नहीं की जाती है तो मुख्य सचिव अदालत की अवमानना के लिए उत्तरदायी होंगे और उन्हें अवमानना का नोटिस दिया जाएगा।’’
अदालत ने यह भी कहा कि अगर अधिसूचना जारी नहीं की जाती है तो संबंधित अधिकारी अवमानना नोटिस का सामना करने के लिए ऑनलाइन माध्यम से उसके समक्ष उपस्थित होंगे।
अदालत ने रिज क्षेत्र में अतिक्रमण के मुद्दे से निपटने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश के अनुसार गठित समिति की मासिक बैठकें नहीं बुलाने पर भी नाराजगी जताई।
अदालत ने मुख्य सचिव के साथ-साथ वन महानिदेशक को भी कार्यवाही में पक्षकार बनाया।
अदालत द्वारा न्याय मित्र नियुक्त किए गए अधिवक्ता आदित्य एन प्रसाद ने अदालत को बताया कि एनजीटी ने कहा था कि दिल्ली में रिज का ऐतिहासिक और पर्यावरणीय महत्व है और उसने भारतीय वन अधिनियम की धारा 20 के तहत आवश्यक कदम उठाकर इसके संरक्षण के लिए तत्काल कदम उठाने को कहा था।
उन्होंने कहा कि एनजीटी ने रिज से अतिक्रमण हटाने के संबंध में प्रगति की निगरानी के लिए भारत सरकार के महानिदेशक (वन) के अधीन एक निगरानी समिति के गठन का भी आदेश दिया था।
अदालत ने कहा कि अगर एनजीटी के आदेश का पालन नहीं किया गया तो वह संबंधित अधिकारियों को अवमानना नोटिस जारी करने के लिए बाध्य होगी।
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, ‘‘आखिरकार, यह प्रशासन ही है जिसे इसकी देखभाल करनी है। यदि आप असमर्थ हैं, तो एक बयान दें कि भगवान दिल्ली के नागरिकों की मदद करें… मैं इसे रिकॉर्ड करूंगा और समय बर्बाद नहीं करूंगा।’’
अदालत ने कहा कि एनजीटी के आदेश के बावजूद अतिक्रमण हटाने का काम धीमी गति से चल रहा है, जो संबंधित अधिकारियों की ओर से प्रयास की कमी को दर्शाता है।
अदालत ने कहा, ‘‘एनजीटी के निर्देश दिया था कि महीने में एक बार निरीक्षण समिति बैठक हो इसप्रकार अब तक 34 बैठकें होनी चाहिए थीं। बैठकों के विवरण से पता चलता है कि छठी बैठक 17 मई को हुई थी और अगली बैठक 14 नवंबर को होनी प्रस्तावित है, जिससे साफ तौर पर पता चलता है कि एनजीटी के आदेश का अनुपालन नहीं हो रहा है।’’
न्यायाधीश ने कहा कि यह ‘‘हैरानी की बात’’ है कि 394 हेक्टेयर अतिक्रमण की गई वन भूमि में से चार वर्षों में केवल 82 हेक्टेयर भूमि ही वापस कब्जे में ली गई और उनपर भी दोबारा अतिक्रमण होने की बात कही जा रही है।
दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि वह कब्जे में ली गई भूमि की स्थिति की के बारे में अदालत में दोबारा पुष्टि करेंगे।
मामले की अगली सुनवाई 15 दिसंबर को होगी।

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